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कवर स्टोरी

उत्तरकाशी में जितने कंकड़ हैं, उतने ही शंकर हैं!

Uttarkashi uttarakhand

उत्तरकाशी (Uttarkashi) : मूल रूप से उत्तरकाशी मंदिरों का शहर है और उससे भी अधिक यह भगवान शिव की नगरी है। यहां एक कहावत है कि उत्तरकाशी में जितने कंकड़ हैं, उतने ही शंकर हैं। शहर के 32 मंदिरों में से कई मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। काशी विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर भी उत्तरकाशी में ही है। लोग अपनी भक्ति भाव और गहरी आस्था लिए इस जगह पर आते हैं। एक बार अगर आप इस जगह पर पहुंच गए तो समझ में ही नहीं आता कि इस शहर में धर्म और आध्यात्म के अलावा भी काफी कुछ है। यहां की नदी, पहाड़, ट्रेकिंग रूट्स इस बात का सन्देश देते हैं कि यह शहर काफी विविधतापूर्ण है।

इस लेख के माध्यम से मैं आपको शिव की नगरी उत्तरकाशी के प्रत्येक पहलुओं से परिचित कराऊंगा ताकि आप उत्तरकाशी (Uttarkashi) जाएं तो इसके हर पहलु को देख और समझ सकें। अपनी यात्रा को यादगार बना सकें और इस जगह पर बार-बार आएं। आपको बता दूं कि मैं इस जगह पर सबसे पहले 2012 में आया था उसके बाद इतनी बार आ चूका हूं कि अब तो याद भी नहीं। मुझे यह शहर सहज बने रहने का हर अवसर देता है। खानपान से लेकर रहन सहन था बहुत ही आसानी और सहजता से उपलब्ध हो जाता है।

इस जगह पर आकर पर्यटन का पर्यटन हो जाता है और ज्यादा खर्च भी नहीं करना पड़ता है। आप अगर इस जगह पर आते हैं तो इस ब्लॉग के माध्यम से आपको पूरी जानकारी मिलेगी।

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उत्तरकाशी का इतिहास

प्राचीन काल से ही उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था। केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए ‘बाडाहाट’ शब्द का प्रयोग मिलता है। केदारखंड में ही बाडाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। पुराणों में इसे ‘सौम्य काशी’ भी कहा गया है। 24 फरवरी 1960 को उत्तरकाशी को जिला बनाया गया। फिर टिहरी गढ़वाल जिले के रवाई तहसील के रवाई और उत्तरकाशी (Uttarkashi) के परगनाओं का गठन किया गया था।

धर्म और अध्यात्म

इस जगह पर आस्था और आध्यात्म की जड़े काफी गहरी एवं प्राचीन है। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में श्रदालु मंदिरों में, अपने पसंदीदा देवों के दर्शन के लिये शिव की नगरी में आते हैं। इस जगह पर आपको भक्ति रस, भक्ति गीत-संगीत का भरपूर आनन्द मिलेगा। घाटों पर अपने शरीर एवं आत्मा को शुद्ध करने के लिए भक्तों की भीड़ मिलेगी। गंगोत्री जाने वाला हर यात्री यहां से होकर जाता है या फिर इस जगह पर रुकता है जिसकी वजह से सदियों से यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल रहा है।

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पहाड़ और प्रकृति

इस जगह को शिव के साथ ही गंगोत्री का भी सानिध्व प्राप्त है। भागीरथी के तट पर बसे उत्तरकाशी (Uttarkashi) को ईश्वर ने प्राकृतिक ने क्या खूब निखारा है। यह जगह जैव विविधता और सौंदर्य से भरपूर है। एक तरफ जहां पहाड़ों के बीच बहती नदियां हैं, दूसरी तरफ पहाड़ों पर घने जंगल दिखते हैं। एक बार आप इन सबके बीच पहुंचकर खो जायेंगे। आपका मन करेगा की बस इसी जगह पर रहकर नदी, पहाड़ और झरनों को अपलक देखते रहें।

पर्वतारोहण और प्रशिक्षण

हिमालय की गोद में बसा उत्तरकाशी (Uttarkashi) एक ऐसे जगह है जहां पर आप पर्वतारोहण अथवा पहाड़ों पर चढ़ाई का लुफ्त उठा सकते हैं। विश्व प्रसिद्ध नेहरू पर्वतारोही संस्थान इसी जगह पर स्थित है। सन 1965 ई. में इस संस्‍थान की स्‍थापना पर्वतारोहण को सीखाने अथवा बढ़ावा देने के लिए हुई थी वर्तमान में यह केंद्र हर साल सैकड़ों युवाओं को प्रशिक्षण देता है। इसके अंदर ही हिमालयन संग्रहालय भी है जहां पर पर्वतारोहण से संबंधित किताबें आदि रखी हुई हैं। पास में स्थित दुकान से पर्वतारोहण से संबंधित सामान भी मिल जाता है।

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घूमने का सही समय

यह जगह पहाड़ पर काफी ऊंचाई पर स्थित है जिसकी वजह से मौसम बदलता रहता है। घूमने टहलने के लिहाज़ से आप मार्च से अप्रैल के बीच सही रहता है। फिर बारिश का मौसम आ जाता है तो जगह-जगह पानी के स्त्रोत खुल जाते हैं इस लिहाज़ से जुलाई से अक्‍टूबर तक सैलानियों की आवाजाही लगी रहती है।

उत्तरकाशी कैसे पहुंचे

आपको सबसे पहले हरिद्वार या फिर ऋषिकेश पहुंचना होगा। फिर शिव की नगरी उत्तरकाशी के लिए बस लेनी होगी। दिल्ली से भी उत्तरकाशी (Uttarkashi) के लिए बसे चलती हैं। हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून है। ट्रैन ऋषिकेश तक आती है उसके बाद आपको बस या फिर टैक्सी लेनी पड़ेगी।

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उत्तरकाशी में कहां ठहरे

साधुओं एवं आस्तिकों के रहने के लिये यहां कई आश्रम हैं। बस अड्डे के बिलकुल पास में कई सारी धर्मशालाएं हैं जो आपको काफी रियायती दर पर मिल जाती हैं। इस जगह पर आपको ठहरने के लिए उत्तराखंड पर्यटन का गेस्ट हाउस भी मिल जायेगा। जिसमें आप अपनी जरुरत के हिसाब से डॉरमेट्री या फिर निजी रूम ले सकते हैं।

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उत्तरकाशी के पर्यटन स्थल

शिव की नगरी उत्तरकाशी में घूमने टहलने की बहुतेरी जगहें हैं। कुछ खास जगहें जहां आप जा सकते हैं उनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, मनेरी, नेतिकता ताल, दायरा बुग्याल और शक्ति मंदिर है। इन सबके अलावा बहुत सारे ट्रेकिंग रूट्स हैं जो आपको प्रकृति को जानने समझने का मौका देते हैं। उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले के अंदर ही हरसिल, गौमुख, गंगोत्री और यमुनोत्री भी आता है जिसकी वजह से इस स्थान का महत्व और महत्ता और भी बढ़ जाती है।

1- विश्‍वनाथ मंदिर

विश्‍वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसी कराना से इस जगह को लोग शिव की नगरी के साथ साथ विश्वनाथ की नगरी भी हैं और इसे देखने के लिए देश भर से श्रदालु आते हैं। बस स्‍टैण्‍ड से 300 मीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर की स्‍थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी। महारानी कांति ने 1857 ई. में इस मंदिर का मरम्‍मत करवाया। महारानी कांति सुदर्शन शाह की पत्‍नी थीं।

2- शक्ति मंदिर

शक्ति मंदिर विश्‍वनाथ मंदिर का ही एक भाग है। इस मंदिर में एक बड़ा त्रिशूल स्‍थापित है। जिसका ऊपरी भाग लो‍हे का तथा निचला भाग तांबे का है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा यानि की शक्ति ने इसी त्रिशूल से दानवों का संघार किया था। इस मंदिर का नाम इसीलिए शक्ति रखा गया है। को मारा था। बाद में इन्‍हीं के नाम पर यहां इस मंदिर की स्‍थापना की गई।

3- मनेरी डैम

शहर से 14 किलोमीटर की दूरी पर एक डैम बनाया गया है। जिसे मनेरी भाली परियोजना के नाम से जाना जाता है, यहां बिजली उत्‍पादन किया जाता है। लेकिन यह जगह इतनी खूबसूरत है कि लोग इसे देखने के लिए आते हैं। मनेरी के आस पास कई छोटे छोटे पहाड़ी गांव हैं जैसे जामक, कामर, हिना, भाटासौड़ आदि। फिल्म कभी कभी के कुछ दृश्य मनेरी डैम पर शूट किये गए थे ।

4- नचिकेता ताल

इस ताल का प्राकृतिक वातावरण बहुत ही खूबसूरत है। जिसकी वजह से लोग इस जगह पर ट्रेकिंग के लिए आते हैं। शांति और सकून से भरी इस जगह के चारों तरफ हरियाली और तट पर एक छोटा सा मंदिर है। ठहरने और खाने की इस जगह पर कोई सुविधा नहीं है। अगर आप इस जगह पर पहुंचते हैं तो उसी दिन वापस भी आना होता है। उत्तरकाशी (Uttarkashi) से टेक्सी या बस द्वारा पहले चोरंगी खाल पहुंचना होता है। इसके बाद लगभग तीन किमी के ट्रेक के बाद नचिकेता ताल।

5- दयारा बुग्याल

यह बुग्‍याल समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर स्थित है। जिसकी वजह से हिमालय का बहुत ही सुंदर नजारा प्रस्तुत करता है। यह काफी बड़ा और विस्तृत घास का मैदान है। दयारा बुग्याल में घास की जमीन 2600 मीटर से शुरू होकर 3500 मीटर तक चला जाता है। इस जगह पर आपको भरपूर हरियाली मिलेगी। यहां पर एक झील और ट्रैकिंग रुट भी है। गर्मियों में आसपास के चरवाहे अपने मवेशियों के साथ इन मैदानों में पहुंचते हैं और सर्द मौसम के आने तक रहते हैं। सर्दियों में इस जगह पर बर्फ खूब पड़ती है और घास के मैदान बर्फ भूमि में बदल जाते हैं और यह जगह स्कीइंग और बर्फ की गतिविधियों के अनुकूल हो जाती है।

दोस्तों, आशा करता हूं कि यह लेख आप लोगों को पसंद आया होगा। मेरी कोशिश हर दिन आपको कुछ नया देने की रहती है। आपको लेख पढ़कर कैसा लगा स्ट्रोलिंग इंडिया और अपने इस घुमंतू दोस्त के साथ जरूर बाटें। 

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travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।