भारत में ऐसी जगहों की कोई कमी नहीं जिनकी बनावट और सुंदरता हमें अचंभित करती हो। भारत के पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा में स्थित उनाकोटी (Unakoti tripura) एक ऐसी ही जगह है। यह स्थान काफी सालों तक अज्ञात रूप में इस जगह पर मौजूद रहा है, हालांकि अब भी बहुत लोग इस स्थान का नाम तक नहीं जानते हैं। जगंलों की बीच शैलचित्रों और मूर्तियों का भंडार अगर देखना हो तो उनाकोटि जा सकते हैं। सच कहूं तो त्रिपुरा आने के पीछे का मेरा सबसे बड़ा आकर्षण उनाकोटी ही रहा है।
फिर क्या था मैंने दिल्ली से फ्लाइट ली और गुवाहाटी होते हुए तक़रीबन छह घंटे में अगरतला पहुंच गया। अगर कोई डायरेक्ट फ्लाइट होती तो यह समय काफी कम हो सकता था पर मुझे कोई डायरेक्ट फ्लाइट नहीं मिली इसलिए पहले गुवाहाटी और फिर गुवाहाटी से अगरतला जाना पड़ा। उनाकोटि त्रिपुरा (Unakoti tripura) के राजधानी शहर अगरतला से लगभग 125 किमी की दूरी पर स्थित है। आप उनाकोटि सड़क मार्ग के द्वारा पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग के लिए आप कुमारघाट रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
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यह स्थान जितना अद्भुत है उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प इसका इतिहास है। स्थानीय लोगों की माने तो इस जगह का इतिहास पौराणिक काल की एक घटना से जुड़़ा है, जिस कारण यह रहस्यमयी स्थान विकसित हो पाया। आखिर वह रहस्य है क्या ? इसी बात को जानने समझने के दौरान मुझे उनाकोटी के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हुई।
इस जगह की सबसे खास बातों में यहां मौजूद असंख्य हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। यह मूर्तियां ही हैं जो इस स्थान को सबसे अलग होने का दर्जा दिलाती हैं। भगौलिक दृष्टि से देखा जाये तो उनाकोटि (Unakoti tripura) एक पहाड़ी इलाका है जो दूर-दूर तक घने जंगलों और दलदली इलाकों से भरा है। इस तरह जंगल की बीच जहां आसपास कोई बसावट नहीं एक साथ इतनी मूर्तियों का निर्माण कैसे संभव हो पाया यह आज भी शोध का विषय है।
इस जगह पर पहुंचने पर दो तरह की मूर्तियां दिखाई देती हैं। एक पत्थरों को काट कर बनाई गईं मूर्तियां और दूसरी पत्थरों पर उकेरी गईं मूर्तियां। उनाकोटी की इस रहस्यमय दुनिया में ज्यादातर हिन्दू धर्म से जुड़ी प्रतिमाएं हैं, जिनमें देवी दुर्गा, भगवान विष्णु, भगवान शिव और गणेश भगवान आदि की मूर्तियां स्थित है।
इसी जगह के बिलकुल बीचोबीच भगवान शिव की लगभग 30 फीट ऊंची बनी हुई एक विशाल प्रतिमा मौजूद है, जिन्हें उनाकोटेश्वर के नाम से जाना जाता है। शिव की विशाल प्रतिमा का साथ दो अन्य मूर्तियां भी मौजूद हैं, जिनमें से एक मां दुर्गा की मूर्ति है। साथ ही यहां तीन नंदी मूर्तियां भी दिखाई देती हैं।
इस जगह पर एक मूर्ति और भी है जिसमें गणेश भगवान की चार भुजाएं और बाहर की तरफ निकले तीन दांत को दर्शाया गया है। यह मूर्ति भी उनाकोटि के मुख्य आकर्षणों में गिनी जाती है। लोग बताते हैं कि भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति बहुत ही कम देखी गई हैं। इस जगह पर भगवान गणेश की चार दांत और आठ भुजाओं वाली भी मूर्तियां पायी गईं हैं।
इन मूर्तियों को कब, किसने और क्यों बनाया इस बात का कोई ठोस आधार नहीं मिलता लेकिन आसपास के गांवों में एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। स्थानीय लोग कहते हैं कि इन मूर्तियों का निर्माण कभी किसी कालू नाम से शिल्पकार ने किया था। मान्यता है कि यहां कालू शिल्पकार भगवान शिव और माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत जाना जाता था, लेकिन यह मुमकिन नहीं था।
शिल्पकार की जाने की जिद्द के कारण यह शर्त रखी गई कि अगर वो एक रात में एक करोड़ (एक कोटि) मूर्तियों का निर्माण कर देगा तो वो भगवान शिव और पार्वती के साथ कैलाश जा पाएगा। यह बात सुनते ही शिल्पकार काम में जुट गया, उसने पूरी रात मूर्तियां का निर्माण किया। लेकिन सुबह जब गिनती हुई तो पता चला उसमें एक मूर्ति कम है। इस तरह वो शिल्पकार धरती पर ही रह गया और यह कहानी आसपास फ़ैल गई।
स्थानीय भाषा में एक करोड़ में एक कम संख्या को उनाकोटि (Unakoti tripura) कहा जाता है। इस जंगली और दलदली इलाके का कोई अपना नाम था इन्हीं इसलिए इस जगह का नाम उनाकोटि पड़ गया।
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