मैं आप सबको उत्तरकाशी के ट्रेकिंग रूट्स के बारे में बताने से पहले यह बता दूं कि मेरी एक दोस्त है मेघा परमार। वह कहती है कि जब तक चढूंगी नहीं तब तक छोडूंगी नहीं। इसी जज्बे से साथ पर्वतारोहण की तैयारी शुरू की और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट को फतह करने निकल पड़ी।
साल 2018 में सब कुछ होने के बावजूद सात सौ मीटर दूरी से माउंट एवरेस्ट फतह करने से चूक गई।
ऐसे में जब तक चढूंगी नहीं तब तक छोडूंगी नहीं वाला उसका जज्बा काम आया। अपनी इंजरी को रिकवर किया और दुबारा ट्रेनिंग के लिए पहुंची तो प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षक के हाथ से रस्सी छूट गई और वह नीचे आ गिरी जिसकी वजह से उनकी रीढ़ की हड्डी में तीन फ्रैक्चर आये बावजूद इसके वह हार नहीं मानी।
फिर 1919 का वह लम्हा आया जब माऊंट एवरेस्ट को फतह कर वह उस ऊंचाई पर पहुंची जिसके ऊपर या तो आसमान है या फिर भगवान है। पर्वतारोहण में दरअसल कुछ इसी तरह के जज़्बे की जरुरत होती है।
पहाड़ चढ़ने का सकून
पहाड़ चढ़ना जितना सकुनदेह है उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। हर कदम पर मौत आपका इम्तहान लेती है। आपको अपने अंदर हौसला रखना होता है और आने वाली परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है। आपके अंदर भी अगर इसी तरह का जज्बा है तो उत्तरकाशी के ट्रेकिंग रूट्स के बारे में पढ़िए। सच मानिये पहाड़ चढ़ने से ज्यादा सकुनदेह कुछ भी नहीं।
कुछ आधरभूत जानकारी जुटाइये, अपना प्रशिक्षण पूरा कीजिये और निकल जाइये।
इतना ही नहीं बहुत सारे ऐसे भी रुट हैं जहां पर आप बिना प्रशिक्षण के भी ट्रेक कर सकते हैं। शुरुआत शौकिया तौर पर कीजिये अच्छा लगे तो संभावनाएं तलाशिये। प्रशिक्षण के लिए वैसे तो बहुत सारे संस्थान हैं लेकिन इस लेख में मैं आपको उत्तरकाशी में स्थित ट्रेकिंग संस्थान और रूट्स की जानकारी देने की कोशिश करूंगा।
नेहरू पर्वतारोही संस्थान
हिमालय की गोद में बसा उत्तरकाशी एक ऐसे जगह है जहां पर आप पर्वतारोहण अथवा पहाड़ों पर चढ़ाई का लुफ्त उठा सकते हैं। विश्व प्रसिद्ध नेहरू पर्वतारोही संस्थान इसी जगह पर स्थित है। सन 1965 ई. में इस संस्थान की स्थापना पर्वतारोहण को सीखाने अथवा बढ़ावा देने के लिए हुई थी वर्तमान में यह केंद्र हर साल सैकड़ों युवाओं को प्रशिक्षण देता है।
इसके अंदर ही हिमालयन संग्रहालय भी है जहां पर पर्वतारोहण से संबंधित किताबें आदि रखी हुई हैं। पास में स्थित दुकान से पर्वतारोहण से संबंधित सामान भी मिल जाता है।
नेहरु पर्वतारोही संस्थान ने उत्तरकाशी में पर्वतारोहण की असीम संभावनाएं विकसित की है। इस संस्थान के होने से उत्तरकाशी के ट्रेकिंग रूट्स ही नहीं इस जिले में स्थित तमाम तरह की गतिविधियों को बढ़ावा मिला है। देश ही नहीं दुनिया भर के पर्वतारोही उत्तरकाशी में आते हैं। यहां के ट्रेकिंग रूटों को ट्रेक करते हैं और एक बहुत रोमांचक अनुभव लेकर लौटते हैं।
यही कारण है कि इस जगह पर बहुत सारे अच्छे ट्रेकिंग रुट विकसित हो गए हैं।
ब्लॉग का केंद्रीय विषय
इस ब्लॉग में मैं आप लोगों को इस जिले में स्थित कुछ महत्त्वपूर्ण ट्रेकिंग रूटों के बारे में विस्तार से बताऊंगा। साथ ही साथ आपको यह भी बताऊंगा कि उत्तरकाशी के ट्रेकिंग रूट्स के इतर छोटे और कम विकसित ट्रेकिंग रुट कौन से हैं ? कई सारे ट्रेकिंग रुट अच्छे होने के बावजूद लोगों की जानकारी में नहीं होते हैं, कारण यह कि उनके बारे में लिखा ही नहीं गया और जब लिखा ही नहीं गया तो उनकी जानकारी इंटरनेट पर भी नहीं आ पायी है। लेकिन बहुत सारे साहसी और उत्साही यात्रियों ने इनको ट्रेक किया है।
आप अगर पर्वतारोहण का शौक रखते हैं तो हर-की-दून, डोडीताल, यमुनोत्री तथा गोमुख से पर्वतारोहण किया जा सकता है। यह सभी जगहें खूबसूरत और आपके साहस का परिचय लेने वाली हैं।
हर-की-दून ट्रेक
हर की दून एक बहुत ही सुन्दर ट्रेक है। दुनिया भर के ट्रेकर्स इसे ट्रेक करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर यह ट्रेक समुद्र तल से 3556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पूरे क्षेत्र में देवदार के पेड़ों की बहुलता है। मान्यता है कि इस जगह से ही होकर ही कभी पांडव स्वर्ग गए थे।
हर-की-दून को भी देवताओं की घाटी भी कहा जाता है। जिसके पीछे कई सारी धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पर इसके पीछे भी वास्तविक सच्चाई यही है कि यह ट्रेक बहुत ही खूबसूरत है। हर-कि-दून की ओर बढ़ते हुए आप गढ़वाल की खूबसूरती को बहुत ही करीब से महसूस कर पाएंगे।
हर की दून एक 8 दिन का बड़ा ट्रेकिंग रुट है जो देहरादून से शुरू और लौटकर देहरादून में समाप्त होता है। ट्रेकिंग के दौरान ट्रेकर्स गढ़वाल की पांच खूबसूरत जगहों को देख सकते हैं जिनमे संकर्री, तालुका, ओस्ला, हरकिदून और जंदहार शामिल है।
डोडीताल ट्रेक
डोडीताल हिमालय की गोद में समुद्र से 3024 मीटर की ऊंचाई पर बसा छोटा सा हिल स्टेशन है जिसे खूबसूरती और रोमांच का अद्भुत संगम कहा जाता है। यह प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग के प्रति उत्साही लोगों के लिए सबसे ज्यादा की जाने वाली जगह है। इस जगह पर एक झील भी है जिसे डोडीताल झील के नाम से जाना जाता है। यह मीठे पानी की झील हिमालय ट्राउट के लिए जानी जाती है।
यह चारो तरफ से पहाड़, घास के मैदान और जंगल से घिरा हुआ है। पौराणिक मान्यता है कि इसी जगह पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस जगह पर भगवान गणेश को समर्पित एक मंदिर भी है। डोडीताल झील को गणेश का ताल या गणेश की झील के नाम से भी जाना जाता है। इस ताल की उत्पत्ति प्राकृतिक झरने और एएसआई गंगा नदी के स्रोत से हुयी है।
डोडी ताल संगम चट्टी से 22 किमी की ट्रेकिंग करके दो दिन में पहुंचा जा सकता है।
यमुनोत्री ट्रेक
समुंद्र तल से 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री यमुना नदी का स्रोत और हिंदू धर्म में देवी यमुना का पवित्र स्थान है। देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम धामों में यह एक है। यमुना नदी के स्रोत यमुनोत्री का पवित्र गढ़, गढ़वाल हिमालय में पश्चिमीतम मंदिर है, जो बंदर पुंछ पर्वत की एक झुंड के ऊपर स्थित है।
मंदिर में भगवान यम के साथ देवी यमुना की एक मूर्ति विराजमान है। यम को यमुना का बड़ा भाई माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जयपुर की महारानी गुलेरिया द्वारा यह मंदिर मूल रूप से 19 वीं सदी में बनाया गया था। यमुनोत्री, यमुना नदी का उद्गम, भी पास में स्थित है। यमुनोत्री में मुख्य आकर्षण देवी यमुना के लिए समर्पित मंदिर और जानकीचट्टी में स्थित तापीय झरना है।
इस जगह पर दुनिया भर के ट्रेकर्स आते हैं, यह काफी प्रसिद्ध ट्रेक है।
हरसिल ट्रेक
हरसिल इस जिले में स्थित सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है और उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग पर स्थित है। इस जगह से गंगोत्री की दूरी महज़ पचीस किमी रह जाती है। शहर के बिलकुल पास से भागीरथी नदी बहती है और आसपास का वातावरण प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर पर्यटकों को अपनी तरफ बुलाता जान पड़ता है।
इस जगह पर पहुंचकर ऐसा लगता है कि किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं। बहुत सारे पर्यटन स्थलों के अलावा इस जगह पर बहुत सारे ट्रेकिंग रूट्स भी हैं पर ज्यादातर लोग इन रूटों से अनभिज्ञ हैं। हरसिल से क्यारकोटी, लम्खागा पास, छितकुल, सातताल के लिए ट्रैकिग रूट काफी अच्छा है। यदि आप इस जगह पर आते हैं तो इसे ट्रेक करना एक अद्भुत अनुभव होगा।
हरसिल वैली में ही हॉर्न ऑफ हरसिल चोटी स्थित है, इसको करीब 5-6 दिनों में ट्रेक किया जा सकता है।
गोमुख ट्रेक
गंगोत्री ग्लेश्यिर के अंत में स्थित गोमुख एक खूबसूरत जगह है। यह जगह शिवलिंग पीक के नजदीक स्थित है। यह दुनिया भर के ट्रेकर्स के बीच अपनी चुनौतीपूर्ण चढ़ाई के लिए जानी जाती है। इस ट्रेक पर बहुत ही ज्यादा सावधानीपूर्वक चढ़ाई की सलाह दी जाती है। यह गंगा नदी का स्त्रोत भी है और घास के मैदानों से होकर गुजरता है।
इस जगह को ईश्वर ने अद्भुत खूबसूरती बक्शी है। आप इस जगह पर आकर प्रकृति के सुंदर नजारों को बेहद करीब से देख सकते हैं।गोमुख के आस पास बहुत सारे पर्यटन स्थल भी हैं। जिसमें से गंगोत्री ग्लेश्यिर भी एक प्रमुख स्थल है। यह हिमालय क्षेत्र के सबसे बड़े ग्लेश्यिरों में से एक है और चारों तरफ से शिवलिंग, थालय सागर, मेरू और भागीरथी तृतीय की बर्फ से ढकी पहाडियों से घिरा हुआ है।
इस ग्लेश्यिर का टर्मिनल प्वाइंट एक गाय के मुंह जैसा दिखता है, इसी कारण इस जगह को गोमुख के नाम से जाना जाता है। यह जगह पर्यटकों के लिए विशेष ट्रैकिंग के अवसर प्रदान करती है। लोकप्रिय ट्रैकिंग रूट यानि रास्ता गंगोत्री से शुरू होता है और गीला पहाड़ और चिरबासा से होकर गुजरता है।
ऑनलाइन सिस्टम से दूर रुट
उत्तरकाशी के ट्रेकिंग रूट्स के अलावा कुछ ट्रेक जिनके लिए कोई सिंगल विंडो सिस्टम नहीं है उन्हें पर्वतारोहियों को ढूंढने में दिक्कत होती है। जिन रूटों को सिंगल विंडो सिस्टम से ऑनलाइन नहीं जोड़ा गया उसमें गंगोत्री से रुद्रगैरा, उड़नकोल, घुत्तू, मयालीपास, केदारनाथ के लिए ट्रैकिग रूट हैं। इसी तरह से हर्षिल से क्यारकोटी, लम्खागा पास, छितकुल, सातताल के लिए ट्रैकिग रूट हैं।
पुराली से ब्रहमीताल, ऋषिताल, सियांगाड, धुमधारकांठी, हर की दून सांकरी के लिए ट्रैकिग रूट हैं। जबकि सुक्की से कांडारावन, बंदरपूछ बेस कैंप, बार्सू से बरनाला, दायरा, गिडारा, डोडीताल, हनुमान चट्टी, रैथल से गोई, दयारा, वक्र गुफा, बकरिया टॉप, मल्ला से कुशकल्याण, सहस्त्रताल, मयालीपास, केदारनाथ के लिए ट्रैकिग रूट हैं।
लाटा, कुंज्जन, संगम चट्टी, खरसाली, हनुमान चट्टी, संकरी, जखोल, ओसला गंगाड़ से दर्जनों ट्रैकिग रूट हैं। लेकिन, हैरानी की बात यह है कि ये सभी ट्रैकिग रूट और पर्यटक स्थल सिंगल सिस्टम में ऑनलाइन नहीं हैं। इसके लिए कई बार आवाज़ भी उठाई गई है लेकिन बजट का नहीं होना आड़े आता रहा है। हालांकि पर्यटन विभाग इस दिशा में कई काम कर रहा है।