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घुमक्कड़ी

भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली सारनाथ 

sarnath varanasi

सारनाथ, वाराणसी (Sarnath Varanasi ) : वाराणसी यात्रा के दौरान मेरी सबसे ज़्यादा उत्सुकता सारनाथ जाने और देखने की रही। यह सारनाथ बाबा विश्वनाथ की नगरी यानि की काशी से लगभग 10 -15 किलोमीटर की दूरी पर है और लुम्बिनी, कुशीनगर, बोधगया की ही तरह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र पवित्र स्थलों में आता है क्योंकि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का पहला उपदेश सारनाथ (Sarnath Varanasi) में ही दिया था। सारनाथ एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहां आपको हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म से सम्बंधित कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल देखने को मिलते हैं। जैन धर्म की बात करे तो यह पावन स्थल जैन धर्म के तीर्थकर श्री श्रेयांसनाथ की जन्म स्थली है। सारनाथ (Sarnath Varanasi) में मंदिर के अलावा स्तूप, मठ, संग्रहालय और पार्क भी देखने को मिलते हैं पर इस जगह पर मेरे लिए सबसे बड़ा आकर्षण सारनाथ का पुरातत्व संग्रहालय था।

यह काफ़ी बड़ा और ख़ूबसूरत है, इस जगह पर बौद्ध धर्म से सम्बंधित वह सभी चीज़ें रखी गई हैं जो इस जगह की खुदाई के समय या फिर बाद में मिली।

संजय शेफर्ड

वाराणसी में दोपहर तक घूमते रहे और फिर सारनाथ (Sarnath Varanasi) पहुंचे तो यह जगह सैलानियों से भरी हुई थी। सबसे पहले हम सारनाथ पुरातत्व संग्रहालय गये और जितना सोचा था कहीं उससे भी अच्छा पाया। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सबसे पुराना स्थल संग्रहालय है। खुदाई की जगह से मिली प्राचीन वस्तुओं को संरक्षित और प्रदर्शित करने के लिए सारनाथ में खुदाई वाले क्षेत्र के पास ही इसका निर्माण किया गया था, जिसके तहत प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित और अध्ययन करने की योजना बनाई गई थी। यह संग्रहालय सारनाथ में पाई गई तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से बारहवीं शताब्दी ईस्वी तक की प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करता है। संग्रहालय में बड़ी संख्या में कलाकृतियों, मूर्तियों, बोधिसत्व और प्रतिष्ठित अशोक का सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष को संग्रहित गया है जिसे ‘भारत के राष्ट्रीय प्रतीक’ के रूप में भी जाना जाता है।

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संग्रहालय देखने के बाद हम लोग साइट पर गये और एक-एक करके सारनाथ (Sarnath Varanasi) के उन सभी पर्यटन स्थलों को देखने और जानने समझने की कोशिश किया जिनके बारे में मैंने सिर्फ पढ़ा था। हम सबसे पहले तिब्बती मंदिर गए और फिर चौखंडी स्तूप, धमेख स्तूप, अशोक स्तम्भ, मूलगंध कुटी विहार, धर्मराजिका स्तूप, डियर पार्क, थाई मन्दिर और सारंगनाथ मन्दिर गए। तिब्बती मन्दिर में बुद्ध जी की एक प्रतिमा बनी है और यह अत्यंत सुन्दर दिखाई देता है। इस मंदिर की संरचना और शिल्पकला दोनों ही अद्भुत है। इस मंदिर के बाहर प्रार्थना पहिये दिखाई देते है जिन्हें घड़ी की दिशा में घुमाया जाता है। यह जगह मुझे काफ़ी अच्छी लगी और फिर हम चौखंडी स्तूप गये। यह स्तूप बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तूप का निर्माण ठीक उसी जगह पर कराया गया है जहाँ गौतम बुद्ध अपने पांच तपस्वियों से मिले थे।

इस जगह पर आकर बहुत ही शांति और सकारात्मकता का बोध होता है, इस जगह को सकारात्मक उर्जा का स्त्रोत कह सकते हैं। 

संजय शेफर्ड

धमेख स्तूप को धर्मचक्र स्तूप भी कहा जाता है। यह स्तूप गोलाकार आकर में बना हुआ है और  एक बौद्ध धार्मिक स्थल के रूप में अपनी ख़ास पहचान रखता है। ईंट और मिटटी से बने इस स्तूप पर मानव और पक्षियों की आकृतियाँ उकेरी गई हैं। धमेक स्तूप की भव्यता दूर से ही प्रभावित करती है। 143 फूट ऊँचे इस स्तूप में न कोई दरवाजा है न खिड़की। फिर हम अशोक स्तम्भ को देखने के लिए गए जिसे देखने की चाह मन में वर्षों से संजोये हुए थे। इस स्तम्भ को सम्राट अशोक ने बनवाया था इसीलिए इसका नाम अशोक स्तम्भ है। इस स्तम्भ में चार शेर बने हुए है जो एक दुसरे से पीठ सटाकर बैठे हुए हैं और स्तम्भ के निचले भाग में अशोक चक्र बना हुआ है जिसे एक आक्रमण में तोड़ दिया गया था। अशोक स्तम्भ के कुछ अवशेष संग्रहालय में भी आपको देखने को मिल जायेंगे।

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हम अशोक स्तम्भ देखने के बाद डियर पार्क गये। यह वह स्थल है जहाँ पर भगवान् बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। यह जगह भी काफ़ी शांत और सुरम्य है। यह पार्क काफ़ी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें हिरन बड़ी ही आसानी से दिख जाते हैं। मूलगंध कुटी विहार सही मायने में कुटी नहीं अपितु एक मंदिर है जिसका निर्माण महाबोधि सोसाईटी ने करवाया था। इस मंदिर की शिल्प और संरचना देखने लायक है। मूलगंध कुटी के प्रवेश द्वार पर एक बड़ी सी घंटी ताम्बे की घंटी बंधी हुई दिखाई देती है, मुख्य भवन तक जाने के लिए सीढियों का इस्तेमाल करना पड़ता है। कुल मिलाकर यह यात्रा हमारे लिए काफ़ी ख़ास रही और हम बौद्ध धर्म से जुड़े तमाम स्थलों को देख और समझ पाये।

भगवान बुद्ध ने अपनी पहली वर्षा ऋतु जिस जगह पर देखी थी वह मूलगंध कुटी विहार के नाम से जानी जाती है।

संजय शेफर्ड

हम सब एक और जगह पर गए जिसे धर्मराजिका स्तूप के नाम से जाना है। इस स्तम्भ को भी सम्राट अशोक ने बनवाया था। यह जगह भी हमें काफ़ी पसंद आयी। कुछ लोगों ने हमें बताया कि शुरू में इस स्तम्भ का व्यास लगभग 44 फुट का था जिसमें बाद के दिनों में कई परिवर्तन हुए। इस जगह पर एक ऐसा मंदिर भी है जिसका निर्माण थाई समुदाय के लोगों ने करवाया था। इस मंदिर के चारो तरफ हरे भरे बगीचे दिखाई देते हैं और मंदिर का शिल्प किसी बेजोड़ शिल्पकला का उत्कृष्ट उदहारण जान पड़ता है। इस मंदिर में आपको थाईलैंड की एक झलक जरूर दिखाई देगी। अंत में हम सारंगनाथ मन्दिर गए। सारंगनाथ (Sarnath Varanasi) मन्दिर में एक ही अर्घ में दो शिवलिंग बने हुए हैं, मंदिर के बिलकुल समीप में ही एक बड़ा सा कुण्ड भी है |

दोस्तों, आशा करता हूं कि यह लेख आप लोगों को पसंद आया होगा। मेरी कोशिश हर दिन आपको कुछ नया देने की रहती है। आपको लेख पढ़कर कैसा लगा स्ट्रोलिंग इंडिया और अपने इस घुमंतू दोस्त के साथ जरूर बाटें। 

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travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।