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ऋषिकेश में घुमक्कड़ों को सन्यासी बनकर रहना चाहिए!

Rishikesh Divine Life

Rishikesh Divine Life: दुनिया में घूमने-टहलने की जगहों की कोई कमी नहीं है। हर जगह, हर शहर का अपना एक अलग चार्म होता है। लेकिन यदि आप ऋषिकेश आते हैं तो आपको घुमक्कड़ नहीं बल्कि सन्यासी बनकर रहना चाहिए। ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा बल्कि कुछ दिन पहले त्रिवेणी घाट पर मिले मुझसे एक साधू ने कहा था। उसकी बातें मुझे अजीब लगी थी लेकिन बाद में जब विचार किया तो पाया कि सचमुच यह जगह मौलिक रूप से साधू और सन्यासियों की है। अब सवाल यह है कि यदि यह जगह (Rishikesh Divine Life) साधू और सन्यासियों की है तो घुमक्कड़ों को इतनी पसंद क्यों आती है ?

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इस सवाल का मैंने जवाब ढूंढा और पाया कि हर घुमक्कड़ के अंदर एक साधू अथवा संत बैठा है जो सन्यास तो लेना चाहता है लेकिन सामाजिक और पारिवारिक जीवन से बाहर नहीं निकल पाता है। अब जब एक बार सन्यास की इच्छा पैदा हो गई तो इसे वह त्याग भी नहीं पाता है। वह बस भटकता रहता है, वह अपने अंदर के घुमक्कड़ और साधुत्व को एक साथ जीता है। वह पाप भी करता है और पुण्य का भागीदार भी होना चाहता है। वह राज सुख भोगना चाहता और उसके अंदर फक्खड़ी को भी जीने की लालसा है। वह पुण्यात्मा भी है और पापी भी।

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जीवन में इतना उतार चढाव है कि वह जीवन की किसी एक निश्चित दिशा को ना तो समझ पाता है और ना ही स्वीकार करता है। उसे लगता है कि जीवन के उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर एक दिन खुद तक पहुंच जायेगा पर यह इतना भी आसान कहां? कभी दूर होकर पास नहीं पहुंच पाता तो कभी पास होकर खुदसे दूर पहुंच जाता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उसे कोई विकल्प ही नहीं समझ में आता। फिर एक वक्त ऐसा आता है जब उसे सबकुछ सामान्य लगने लगता है।

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वह जीवन के उतार-चढ़ावों को समझने की बजाय मुक्त होने की बात करता है। पर किस तरह की मुक्ति चाहिए उसे समझ में नहीं आती। सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्ति ? अपने अंदर के विकारों अथवा अपने आपसे मुक्ति ? एक भटकाव सदैव उसके साथ-साथ चलता है। हम भाग क्यों रहे हैं ? क्योंकि ठहराव चाहिए। जिसका जीवन पहले से स्थिर है उसे ठहराव की क्या दरकार ? उसे तो गति चाहिए। इसलिए जीवन का जो अंतिम ध्येय ना तो ठहराव है और ना ही गति, बल्कि संतुलन है।

दुनिया के सारे घुमक्कड़ों को लगता है कि कोई तो जगह होगी इस ब्रह्माण्ड में जो उसे रोक लेगी। ऋषिकेश रोकता है, हर किसी को ठहर जाने के लिए विवश करता है और बहुत सारे लोग जो दुनिया घूमने आते हैं सिर्फ और सिर्फ ऋषिकेश के होकर रह जाते हैं। इस जगह को एक शब्द में परिभाषित करना हो तो संतुलन कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। इस जगह पर गति भी है, ठहराव भी और संतुलन भी इसीलिए यह सदियों से ठहरा हुआ है।

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इसीलिए इस जगह पर हर कोई खींचा चला आता है। योग, ध्यान, धर्म, कर्म, आस्था के जरिये अपनी ऊर्जा को संतुलित करने की कोशिश करता है। यह जगह हर किसी को अपने तरीके से जीने की सहूलियत देती है। उन लोगों को भी साधुत्व और सन्यास को जीने का एक मौका देती है जो बीच में अटके हुए हैं और सन्यास लेने की अपनी इच्छा का परित्याग नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए इस जगह पर आकर कुछ दिनों के लिए ही हर कोई साधू या फिर सन्यासी का जीवन जीता है।

मैं भी कभी ऋषिकेश महज़ घूमने के लिए आया था और यहीं का होकर रह गया। हर किसी को एक ठहराव चाहिए, मुझे यह ठहराव ऋषिकेश ने दिया है। कुछ दिनों के लिए ही सही मैं एक घुमक्कड़ से सन्यासी हो गया हूं। इन दिनों मैं अपने जीवन में सन्यास को (Rishikesh Divine Life) जी रहा हूं।

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travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।