Nomad Meetup : यात्राओं में जो कोई मिलता है वह थोड़े समय का सहयात्री है। फिर, फिर चाहे कोई भी हो, कितने भी कम समय के लिए ही क्यों ना मिला हो। ये बात मुझे देहरादून से निकलने के बाद उस समय समझ में आई जब मैं ऋषिकेश पहुंच कर अचानक उस लड़की और एक बुजुर्ग दंपति से मिला।
हुआ यूं कि गाड़ी से हम तीनों एक ही जगह पर उतरे थे।
अंतर बस इतना कि उनके पास एक पता था और मैं बिना पते का। गाड़ी जैसे ही दो-तीन पहाड़ी मोड़ों के बाद रुकी। दोनों ने अपना सामान समेटा और बस से नीचे उतर गए। मैं उनसे थोड़े बाद में उतारा, और देखा कि वह एक पेड़ के नीचे एक पतली चटाई डाल सुस्ता रहे हैं। मैंने देखा कि – एक 56 साल की औरत की जांघ पर एक 58 साल के आदमी का सर टिका है और दोनों ही एक दूसरे की आंखों में आंखे डाल एक दूसरे से बातें कर रहे हैं।
मेरा मन खुशी से भर उठा। शहरों में ऐसे दृश्य बहुत कम देखने को मिलते हैं।
थोड़ी देर बाद दृश्य आंखों से ओझल हुए तो मैंने अपने पैरों के नीचे की जमीन ढूंढ़ने की कोशिश की। मैं उतर तो गया गाड़ी से पर मुझे समझ में नहीं आया कि इतने निचाट और सुनसान जगह पर क्यों उतरा ? यहां जिस जगह को मैं तनिक भी नहीं जानता वहां रुकने का औचित्य क्या है ?
शायद, वहां एक नदी थी। शायद, इसलिए कि वहां नदी और पहाड़ दोनों थे।
एक छोटी चाय की गुमटी और मुख्य मार्ग से कट कर जंगल को जाता हुआ एक रास्ता। मैंने सोचा रास्ता है तो कहीं एक छोटा सा गांव भी होगा, गांव न भी सही तो मानव बसावट तो होगी ही।
हां, मैं ऐसे ही अनेक दृश्यों में ठहरा रह जाता हूं। एक बार फिर से ठहरा रह गया। मुझे अचानक से ही पता नहीं क्यों ऐसा लगा था कि इस जगह को मैंने बहुत पहले कहीं देखा है। लेकिन इस जगह पर मैं पहले कभी नहीं आया। यह गांव महज़ मेरी स्मृतियों में था। वर्षों से ऐसा ही कोई जगह अक्सर मैं देखना चाहता था। शायद, इसलिए पैर को किसी ने कुछ देर के लिए मानोंकि एक दूसरे से बांध दिए हों। मैं बहुत हैरान था, और बहुत खुश भी।
बस मेरे पास कोई पता नहीं था, ना ही कोई निश्चित ठिकाना।
गाड़ी से उतरने के पश्चात मैंने भी अपनी चटाई वहीं बिछा दी जहां वह बुजुर्ग दंपति बैठे थे। उन्होंने एक हिचक के साथ पूछा कि कहां जाओगे ? मुझे अच्छा लगता है ऐसे कोई अनजान जब मुझसे मेरा गतंव्य पूछता है। लेकिन ऐसे सवाल कई बार मुझे परेशान भी कर देते हैं। क्योंकि उन्हें बताने के लिए मेरे पास कुछ ख़ास, कोई निश्चित पता नहीं होता।
इस बार भी यही था। पर मेरी मुलाक़ात (Nomad Meetup) अच्छी रही।
मैंने कहा कि मुझे नहीं पता। बस इस जगह की खूबसूरती और इस पगडण्डी को देखकर रुक गया। फिर उन्होंने कोई सवाल नहीं किया और जब जाने लगे तो बोले कि चलो। मुझे, आश्चर्य हुआ, वह बोले कि पहाड़ी घरों का कोई निश्चित पता नहीं होता। यह घर और गांव जो दिखाई दे रहे हैं क्या पता एक बारिश के बाद दिखे ही नहीं। वैसे भी मेरा गांव अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
मैंने उनकी हर एक बात को बहुत ही ध्यान से सुनी और उनके साथ-साथ आगे बढ़ने लगा। हां, रास्ते उबड़-खाबड़-कठिन जरूर थे पर मन में एक बहुत बड़ी निश्चिंतता थी। निश्चिंतता इस बात कि की उस पहाड़ी गांव में मुझे बिन मांगे ही एक पता मिल गया था। मुझे अब रात के खाने और बिस्तर के लिए कहीं भटकना नहीं था।
वह दोनों लोग मुझसे पूरे रास्ते बातें करते रहे। मुझसे मेरे घर परिवार और शादी के बारे में पूछा। फिर जीवन और काम धंधे के बारे में। साथ ही यह भी कि तुमने घूमना कब सीखा? मैंने एक-एक करके उनके सारे सवालों के जवाब दिए और यह बात हमेशा मन पर हावी रही कि मैं अपने सपनों के गांव में जा रहा हूं।
फिर हम घने जंगलों के बीच से गुजरने लगे तो राजा जी नेशनल पार्क का कोर ज़ोन होने की वजह कई जंगली जानवर भी दिखे और कोर ज़ोन होने के कारण इस गांव पर मडराते खतरे को भी जाना। इस बात को जानकर मन दुःख से भर गया कि आज़ादी के वर्षों बाद भी कोर ज़ोन होने के कारण यहां के तक़रीबन दस गांवों को सड़क, बिजली, पानी की समस्याओं से महरूम रखा गया है और ना ही इनके विस्थापन के उपाय किये गए हैं।
मन दुःख से भर गया था फिर भी मैंने मुस्कराने की कोशिश की।
कुछ देर बाद ऐसे ही एक घर पर जाकर रुकने ही वाले थे कि एक लड़की लगभग चीखते हुए मेरे पास दौड़ी आई – भइया आप मेरे घर कहकर दोनों बाहें खोल छाती से लिपट गई। मैंने उसकी पीठ, कंधे और सर पर हाथ रखा और वह जब अलग हुई तो अपने लिए उभरे उसके चेहरे के हर एक भाव को सहेजकर एक डायरी में रख लिया।
कुछ देर बाद याद आया कि इस लड़की से कुछ दिन पहले ही देहरादून के एक स्कूल में मिला था। लड़की ने मुझे कुछ पहाड़ी गीत- गाने और कविताएं सुनाई थी।
लेकिन अभी ? यहां तो कुछ भी, किसी स्तर पर भी प्रयोजित नहीं था। बस हमें दोबारा मिलना (Nomad Meetup) था।
इसलिए, हम फिर मिले (Nomad Meetup)।
मैंने धोतिया गांव में कुल तीन दिन बिताए और अंत में बिना किसी पूर्व में किए वादे के साथ यह सोचते हुए आगे बढ़ गया कि वह बुजुर्ग दंपति आखिर कौन थे ? और वह लड़की जो तीन सौ लोगों की भीड़ की परवाह किए आकर मुझसे लिपट गई ?
मेरे पूर्व जन्म के साथी, मेरे सहयात्री।
अगर यह पूरी दुनिया हम घुमक्कड़ों का घर है तो मेरे परिवार की एक सदस्य !
[ कुछ चेहरे बिछड़ जाने के बाद भी बहुत याद आते हैं, वह नन्हीं परी मुझे अब भी बहुत याद आती है। ]
चलिए, आशा करता हूं कि इस लेख को पढ़ने के बाद जब भी आप अगली बार बाहर निकलेंगे तो इस जगह पर जाना पसंद करेंगे और अपने अनुभव स्ट्रोलिंग इंडिया और अपने इस घुमंतू दोस्त के साथ जरूर बाटेंगे।
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