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घर से फकीर की तरह निकलो और लौटो तो गृहस्थ की तरह

Nomadic Lifestyle

Nomadic Lifestyle : मैं ऐसे ही बैठा हुआ था। थका, हारा, उदास। वह आये। हाथ थाम हथेलियों को देखते हुए पूछा। क्या तुम्हें पता है कि तुम यहां क्यों हो ? नहीं, मुझे नहीं मालूम। वे मुस्कराए और बोले कि तुम्हारे नसीब में कुछ आज़ाद रातें हैं, कुछ मस्तमौला दिन। तुम्हारे नसीब में नदी को तकिया बना। चांद के नाक के नीचे, पहाड़ों पर सोने का सुख है। और तुम लौटना चाहते हो ? मैं चौंका। हां, पर आपको कैसे पता कि मैं लौटना चाहता हूं ? इस बार उनकी मुस्कराहट हंसी में परिवर्तित हो गई। वह बोले कि तुम सचमुच बहुत नादान हो। तुम्हें क्या लगता है ? तुम्हारा थके, हारे, उदास बैठना किसी से छुपा हुआ है ?

यहां छोटी सी घाटी में मेरे आलावा कम से कम 500 लोग हैं जो तुम्हारे चेहरे को पढ़ सकते हैं। तुम्हारी जीत, तुम्हारी हार, तुम्हारी थकान और उदासी सब चेहरे पर लिखी हुई है। इतना सुनकर मैं मुस्करा उठा। वह बोले क्या तुम इन मुस्कराहटों के पीछे कुछ छुपाना चाहते हो ? मैंने कहा- नहीं, दरअसल मेरे पास बताने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं घर से बिना पैसे के निकला हूं। इस समय मुझे भूख कुछ ज्यादा ही लगती है, प्यास कुछ ज्यादा ही महसूस होती है। मुझे अपनी भूख, अपनी प्यास को लोगों के सम्मुख जाहिर करने बिल्कुल भी नहीं आता है।

क्या तुम्हें कुछ पैसे चाहिए ? मैंने कहा नहीं, यह कुछ दिन बाद खत्म हो जाएंगे। फिर मैं अपनी भूख और प्यास का क्या करूंगा ? उन्होंने पूछा कि कितने दिन हुए खाना खाये ? मैंने कहा दो दिन। नहाए ? आज सुबह ही नहाया कहते- कहते मानों मेरी आंखों में कोई वीरानी उतर आई। वह कुछ देर के लिए एक झोपड़ी के अंदर गए जिसमें जमीन पर बिछी एक चटाई और कमण्डल के अलावा कुछ भी नहीं था। फिर वापस आये तो उनके हाथ में एक पोटली थी। मुझे थामते हुए उन्होंने कहा रख लो वक़्त-बेवक्त काम आएगी।

मैंने कहा क्या है यह ? उन्होंने कहा माया। इस बार मैं जोर से हंसा और कहा इसी से भागकर तो इतनी दूर आया हूं। फिर लौटना क्यों चाहते हो तुम ? फिर हार क्यों रहे हो ? आत्मसमर्पण क्यों कर रहे हो ? तुम्हारी आंखों में आंसू क्यों हैं ?

मैंने हाथ को पलटकर अपने आंसू पोछे तो ऐसा लगा कि गंगा जी को मैंने अपनी अंजुरी में समेट लिया है।

वह बोले कि तुम जिस गंगा में नहाकर अपनी देह को पवित्र करने हरिद्वार तक पहुंचे हो उसी देह की पवित्रता में एक दिन नदी, पहाड़, झरने सबके सब समा जाएंगे। लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें मन और आत्मा से पवित्र होना होगा।
नहीं, ऐसा नहीं होगा। मैंने कहा।

क्यों ? वह बोले।

क्योंकि मैं बहुत बड़ा पापी हूं। उनकी मुस्कराहट उनके होंठो से उठकर पास बहती गंगा में जा समाई। ऐसा लगा कि वह कह रहे हों कि- “पाप और पुण्य दोनों ही इंसान के साथ नहीं चलते, बड़ी यात्राओं में यह अक्सर पीछे छूट जाते हैं, या फिर पूर्व के सारे कर्म यात्राओं के दौरान निरुद्देश्य हो जाते हैं। इसलिए घर से जब भी निकलो एक फकीर की तरह निकलो और लौटो तो गृहस्थ की तरह। घुमक्कड़ी का बस यही एकमात्र मूल है।

मुझे नहीं पता था कि वह मुझे घूमंतु जीवन (Nomadic Lifestyle) की सीख दे रहे हैं।

अंत में उन्होंने मेरी ही बात को दोहराते हुए कहा कि तुम्हें भूख कुछ ज्यादा लगती है, प्यास कुछ ज्यादा महसूस होती है। इसका मतलब कि तुम जिन्दा हो। जिस दिन तुम अपनी भूख और प्यास को मार दोगे उसी दिन एक टुकड़ा मर जाओगे। तुम एक घुमक्कड़ के साथ गृहस्थ भी तो हो ? ईमानदारी से बताओ कि दोनों में से किसे मारना चाहते हो ?

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। बुद्ध होना इतना आसान कहां है ? हम सब बुद्ध नहीं हो सकते, हर यात्रा के बाद हमें लौटना होता है। दरअसल, हम सब साधु के भेष में गृहस्थ हैं। वह सिर्फ एक ही था जो कभी नहीं लौटा।

अब जाओ, मैंने तुम्हें मुस्कराहट दी है। यह कभी खत्म नहीं होगी। और बिना यह पूछे कि कौन हो आप ? अपनी यात्रा के अगले पड़ाव पर निकल पड़ा।

पाप- पुण्य को पीछे छोड़, बिल्कुल अकेले …

( तकरीबन डेढ़ महीने बाद यात्रा पूरी हो गई। एक सवाल जो आज दो साल बाद भी परेशान करता है वह यह है कि आखिर वो कौन थे ? जिन्होंने मुझे पाप- पुण्य, मेरे पूर्व के कर्मों से आज़ाद किया, जिन्होंने मेरे होंठों को मुस्कराहट बक्शी। )

इस तरह से मैंने घूमंतु जीवन (Nomadic Lifestyle) जीना सीखा। ईश्वर को मैंने ऐसे ही छोटी-छोटी चीजों में देखा है, मेरा कोई अपना सम्पूर्ण ईश्वर नहीं है।

चलिए, आशा करता हूँ कि ये ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। पढ़ने के बाद जब भी आप यात्रा पर निकलेंगे तो इस सुझाव का ख्याल रखेंगे और अपने अनुभव स्ट्रोलिंग इंडिया और अपने इस घुमंतू दोस्त के साथ जरूर बाटेंगे। 

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travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।