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कवर स्टोरी / ब्लॉग

प्रेम में पुरुष स्त्री की पीठ होना चाहता है, बिल्कुल सख़्त और खुरदुरा!

mutual love relationship

Mutual Love : यह बात तकरीबन दो साल पहले की है। दिन प्रतिदिन की तरह नहाने के बाद बालकनी में खड़ा मैं सड़क से गुजरते इक्का दुक्का लोगों को देख रहा था। यह आमतौर पर सुबह की पहली चाय का वक़्त होता था। वह दो बड़ी कप में चाय भरकर लाती और हम दोनों पीते-पीते घंटों तक बातें किया करते थे।

हर दिन की तरह वह उस दिन भी आई परन्तु उसके हाथ में चाय की कोई प्याली नहीं थी।
मैंने पूछा- क्या चाय नहीं बनाई ?
उसने कहा कि लत बहुत खराब चीज होती है और बात करते- करते अक्सर कंधे पर हाथ रख देने वाली उस लड़की ने मेरी पीठ पर हाथ रख दिया।
मेरी पीठ को उसके स्पर्श की आदत नहीं थी। पूरी देह चिहुंक पड़ी।
लड़की ने मेरी असहजता को भाप पूछा क्या हुआ ?
मैंने कहा कुछ नहीं।
दिन प्रतिदिन की तरह वह अपने काम में लग गई।

सच कहूं तो प्रेम (Mutual Love) के मामले में वह बिल्कुल तरल थी और मैं किसी बर्फ की तरह जमा हुआ।

वह बिल्कुल ही सहज लग रही थी। हर रोज़ की तरह वह थोड़ी देर बाद कीचन से चाय लेकर लौटी और घंटों बातें करती रही। पर मैंने उस छोटी सी हरकत की वजह अपनी सहजता को खो दिया था।
उसने कहा कि तुम अच्छे प्रेमी हो पर तुम्हें कभी प्रेम करने नहीं आया।
मैंने कहा कि मन का भी तो अपना प्रेम होता है ?
वह जोर से हंसी। बोली प्रेम बस प्रेम (Mutual Love) होता है। सिर्फ और सिर्फ प्रेम। कई बार कठोर स्वरूप में सामने आता है पर तरलता इसका उत्कृष्ठ और उच्चतम गुण है। शायद हमारा पारस्परिक संबंध अभी उस स्तर पर नहीं पहुंच पाया है। हमें एक दूसरे को थोड़ा और वक़्त देना चाहिए।
क्या तुम्हें बुरा लगा ? मैंने पूछा।
उसने कहा कि हां बुरा लगा। प्रेम करती हूं ना तो बुरा लगना लाज़मी है। पर मेरे साथ असहजता वाली कोई बात नहीं है।

बात सिर्फ इतनी है कि मेरे लिए प्रेम में देह गौण है और तुम्हारे लिए तो यह अभी तक कोई विषय ही नहीं बन पाई है।

कुछ देर बाद चाय ख़त्म करके कप को कीचन में रख हम दोनों अपने अपने कमरे में चले गए। याद आया कि तकरीबन दो साल पहले हम एक दूसरे के करीब आए थे। नजदीकियां थोड़ी और बढ़ी तो एक किराए का घर लेकर दो अलग अलग कमरों में रहने लगे। जब यहां आए उस समय हम सिर्फ दोस्त थे, फिर अच्छे दोस्त बने और अब रिश्ता कुछ दिनों से थोड़ा और ज्यादा गहरा और प्रगाढ़ होता महसूस हुआ है। परन्तु यह ज्यादातर वैचारिक ही रहा है।
हमने हर विषय पर एक दुसरे से खुलकर बातें की है।

मुझे अभी तक फर्क सिर्फ इतना ही समझ में आया कि प्रेम को मैं पृथक करके देखता हूं उसे समग्रता में देखने की आदत है।

यही वह बात है जो प्रेम में अक्सर अवरोध का कारण बनती रही है। हम दोनों अक्सर किसी ना किसी बात को लेकर उलझते और वह उलझाव इतना भारी हो जाता कि अपने- अपने कमरे में जाकर सो जाते।
रातें कैसी भी हों, पर सुबहें हमेशा से एक जैसी रहीं। ये सुबहें हर रोज़ एक नई जिन्दगी की तरह शुरू होती जिसमें चाय की बहुत ही जरूरी जगह थी। इनफैक्ट हमारा हर दिन चाय के साथ ही शुरू होता था।
आज पहली बार स्पर्श से शुरू हुआ और प्रेम में पहले स्पर्श से देह चिहुंक उठी और पता नहीं क्यों एक असहजता का भाव घर कर गया।

क्या प्रेम में छुना कोई असहज भाव पैदा करने वाली प्रक्रिया है ? मैंने अपने आपसे सवाल किया और इसी सवाल के बीच खोया रहा।

दिन प्रतिदिन की तरह उसने अपना झोला उठाया और नियत समय से लाइब्रेरी चली गई। उसके जाने के बाद तब तक मैं सिर्फ और सिर्फ उस घटना के बारे में सोचता रहा जब तक कि वह वापस नहीं आ गई।
शाम ढलने से पहले वह वापस आई। चाय बनाई और हम दोनों बिना बात किए चाय को घंटों सुड़क- सुड़क कर पीते रहे। वर्षों के इस अंतराल में ना जाने कितना कुछ जमा हो गया था जो अब पिघलना चाहता था। पर चुप्पियों को तोड़ने वाला हम दोनों के बीच कोई और नहीं था।
वह चुप्पियां गहरी होती होती ना जाने कब उदासी में बदल गईं। हम दोनों अपने अपने कमरे में जाकर सो गए।

कुछ देर बाद नींद खुली तो मेरे सामने उसकी जाती हुई उदास पीठ थी। मैंने देखा कि वह बालकनी में खड़ी सूनी सड़क को एकटक देख रही है। मुझे पता चल गया था कि वह अब मेरे जीवन से धीरे धीरे जा रही है।
आज तक मुझे सचमुच यही लगता रहा था कि मन का प्रेम ही सर्वोपरि है।
लेकिन बीते बारह घंटे में मैंने जिस खालीपन को मेहसूस किया था उसमें मन और आत्मा से इतर भी प्रेम की भी एक विशिष्ट जगह बनी थी।
पारस्परिक प्रेम (Mutual Love) में उसी जगह को तो पाटना था, उसी खालीपन को तो भरना होता है।
वह किसी शून्य में खोई हुई थी।
मैंने पीछे से जाकर उसके खाली कंधे पर अपना हाथ रखा। वह मुड़ी तो उसके माथे पर होंठ रख अपनी छातियों में भींच लिया।

आखिर प्रेम में, हर पुरुष एक स्त्री की पीठ ही तो होना चाहता है ! बिल्कुल सख़्त और खुरदुरा !

दोस्तों, आशा करता हूं कि यह लेख आप लोगों को पसंद आया होगा। मेरी कोशिश हर दिन आपको कुछ नया देने की रहती है। आपको लेख पढ़कर कैसा लगा स्ट्रोलिंग इंडिया और अपने इस घुमंतू दोस्त के साथ जरूर बाटें। 

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travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।