इस बार की यात्रा पहाड़ की यात्रा होते हुए भी मेरी बाकी यात्राओं से अलग थी। सुबह की फ़्लाइट से मुझे कोचिन पहुँचना था और फिर टेक्सी लेकर मुन्नार (Munnar Kerala) जोकि एयरपोर्ट से लगभग 110 किमी की दूरी पर स्थित है। यह जगह सिर्फ़ भौगोलिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक रूप से देश की बाकी जगहों से अलग है इसलिए यहाँ आने का विचार बहुत ही पहले से ही मेरे मन में था। बस इंतज़ार था छुट्टियों का और जैसे ही डेली-डेली की रूटीन वर्क से फ़ुर्सत मिली बस निकल पड़ा और जब सुबह-सुबह इस जगह पर पहुंचा तो यहाँ का मौसम बहुत ही ख़ुशगवार था। सच कहूँ तो यहाँ के लाजवाब मौसम का ही कमाल है कि पूरे साल सैलानियों का आना जाना लगा रहता है।
मैंने इस जगह के भूगोल को समझने की कोशिश में पाया कि तीन पहाड़ी धाराएँ मुतिरापूझा, नल्लथन्नी और कुंडला जहाँ मिलती हैं, वहाँ मुन्नार (Munnar Kerala) का उदय होता है।
मुन्नार वर्तमान में दक्षिण भारत के सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाले पर्यटन स्थलों में आता है। इस जगह पर रहते हुए इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान, आनामुड़ी चोटी, माट्टूपेट्टी, पल्लिवासल, चिन्नक्कनाल और आनयिरंगल, टॉप स्टेशन, चाय का म्यूज़ियम जैसी जगहों को देखा और वहाँ घुमा जा सकता है।
मेरी मुन्नार (Munnar Kerala) घूमने की शुरुआत मुन्नार पहुंचने से पहले हो गई थी। कोचिन से जैसे ही निकला एक दोस्त ने बताया कि मुन्नार शहर कई साल पहले मुथुवन ट्राइबल समुदाय का घर था और 19 वीं शताब्दी से पहले तक इसे एक अज्ञात जगह के तौर पर जाना जाता था। जॉन मुनरो जो कि एक स्कॉटिश सैनिक थे और एक प्रशासक के रूप में त्रावणकोर और कोचीन राज्यों में अपनी सेवा दी थी उन्होंने ही मुन्नार शहर की स्थापना की।
यह उस समय की बात है जब त्रावणकोर और मद्रास के बीच की सीमा को लेकर विवाद चल रहा था। इसी विवाद को सुलझाने को लेकर इस जगह की उन्होंने यात्रा की। लेकिन यहाँ आने के बाद वह खुद को मुन्नार की सुंदरता से मंत्रमुग्ध होने से नहीं रोक सकें। मुनरो ने भूमि को अधिग्रहित करने और वृक्षारोपण शुरू करने के लिए लोगों को आश्वस्त किया और आखिरकार, उन्हें सफलतापूर्वक भूमि मिल गई।
फिर उन्होंने एक एग्रीकल्चर सोसाइटी का गठन किया। इस संगठन ने इस जगह पर जल्द ही इलायची, कॉफ़ी, सिनकोना आदि फसलों की खेती में बड़ी सफलता हासिल की और यह जगह विश्व के नक़्शे पर आयी।
समुद्र तट से अच्छी ऊँचाई पर होने के कारण यह हिल स्टेशन काफ़ी ठंडा रहता है। यही कारण है कि यह कभी दक्षिण भारत में ब्रिटिश सरकार के गर्मियों का विश्राम स्थल हुआ करता था। बताया जाता है कि गर्मियों के दौरान अंग्रेज़ अधिकारी अपनी छुट्टियाँ व्यतीत करने के लिये आया करते थे। इस जगह (Munnar Kerala) को समृद्ध और प्रसिद्ध बनाने में उनका भी काफ़ी योगदान रहा और यह एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकी।
इस जगह पर पहुंचने पर सबसे पहले बेतरतीब फैले हुए चाय के बागान, ख़ूबसूरत तस्वीर से दिखते नगर, सनसन बहती हवा सी सड़कें अनायास ही मन को मोहने लगती हैं। इस जगह पर छुट्टी मनाने की विभिन्न सुविधाएँ मौजूद हैं जो सैलानियों को काफ़ी रास आती और इस जगह को लोकप्रिय बनाती हैं।
मुन्नार (Munnar Kerala) का पूरा क्षेत्र हरे-भरे जंगलों से ढँका हुआ है जो कि देखने में बहुत ही अच्छा लगता है। यहाँ के जंगलों और घास के मैदानों में नीलाकुरिंजी नामक एक विशेष वनस्पति पायी जाती है। जिसे देखने की इच्छा मुन्नार आए हर सैलानी के दिल में रहती है। आपको बता दूँ कि नीलाकुरिंजी एक नीले रंग का फूल है जोकि बारह वर्षों में सिर्फ़ एक बार खिलता है और अगली बार यह 2030 में खिलेगा। इस जगह पर दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी भी है जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है।
मुन्नार (Munnar Kerala) ट्रेकिंग, हाइकिंग और कैम्पिंग के लिहाज़ से भी काफ़ी अच्छी जगह मानी जाती है। देश भर से लोग इस जगह पर ट्रेकिंग करने आते हैं और कैम्पिंग का लुत्फ़ उठाते हैं।
हमने सबसे पहले अपने ठहरने के लिए ट्री हाउस रेंट किया और मुन्नार की आसपास की जगहों को एक्सप्लोर करने में लग गये। मून्नार तो ख़ूबसूरत है ही साथ ही साथ इसके आसपास घूमने की कई महत्वपूर्ण जगहें हैं जो यात्रियों को अपनी तरफ़ खिंचती जान पड़ती हैं।
हम सबसे पहले इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान गए जोकि मुन्नार का मुख्य आकर्षण है।
यह उद्यान दुर्लभ तितलियों, जानवरों और पक्षियों की अनेक प्रजातियों का भी घर है लेकिन सबसे ज़्यादा विलुप्तप्राय जंतु नीलगिरि तहर के लिए प्रसिद्ध है। आपको बता दूँ कि नीलगिरि तहर तमिलनाडु और केरल राज्यों में नीलगिरि पर्वत और पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में रहने वाला एक जंगली प्राणी है। दक्षिणी पश्चिमी घाट के पर्वतीय वर्षा वनों के खुले पर्वतीय चारागाह कम ऊंचाई पर होने के बावजूद घने जंगलों से घिरे रहते हैं। यह पहले इन घास के मैदानों में चरते थे लेकिन अवैध शिकार की वजह से इनकी संख्या महज़ 100 के आसपास रह गई थी जोकि अब बढ़कर 2000 हो गई है और इसी कारण से यह संकटग्रस्त घोषित की गई।
यह उद्यान ट्रैकिंग के लिए भी सबसे अच्छी और सर्वोत्तम माना जाता है। इस उद्यान में कई अनएक्सप्लोर रास्ते हैं जहां पहुंचने के लिए ट्रेकिंग के अलावा कोई अन्य विकल्प समझ में नहीं आता। इस जगह पर कोहरे की चादर से ढके चाय के बागान देखने में बहुत सुंदर दिखते हैं और जब नीलाकुरिंजी खिलता है तो ये पहाड़ी ढलान नीले रंग के हो जाते हैं। इरविकुलम राष्ट्रीय उद्यान के भीतर आनामुड़ी नामक एक चोटी स्थित है जिसे दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी होने का दर्जा प्राप्त है। आनामुड़ी चोटी को ट्रेक करना देश भर के ट्रेकरों का सपना होता है।
दूसरे दिन ट्री हाउस से निकलते ही मेरे गाइड ने मुझे बताया कि अगर मुन्नार (Munnar Kerala) में रहते हुए आप बोटिंग का मज़ा लेना चाहते हैं तो माट्टूपेट्टी से बेहतर जगह शायद ही कोई हो सकती है। आपको बता दूँ कि माट्टूपेट्टी मुख्य रूप से दो ही चीज़ों के लिए जाना जाता है, पहला डैम और दूसरी सुंदर झील के लिए जिसमें आप बोटिंग कर सकते हैं और आसपास की पहाड़ियों और भूभाग के नज़ारे देख सकते हैं। बोटिंग में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं होते हुए भी इस जगह पर जाना मैंने तय किया और पाया कि यह जगह सचमुच काफ़ी ख़ूबसूरत है।
इस जगह पर कुछ लोग इसलिए भी आते हैं क्योंकि अधिक मात्रा में दूध देने वाली गायों की विभिन्न नस्लों को देख सकें क्योंकि माट्टूपेट्टी इंडो-स्विस लाइवस्टॉक परियोजना द्वारा संचालित डेयरी के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। इस जगह पर गायों की कई ऐसी प्रजाति पायी जाती है जो काफ़ी मात्रा में दूध देती हैं।
हम इस जगह पर जाना तो चाहते थे पर समयाभाव के चलते हम जा नहीं सके।
मून्नार (Munnar Kerala) नगर के पास ही चिन्नक्कनाल और उसके जलप्रपात हैं जिन्हें पावर हाउस वाटरफॉल के नाम से जाना जाता है, इस जगह पर काफ़ी लोग आते हैं। इसका पानी समुद्र तल से 2000 मीटर के ऊपर से चट्टानों पर गिरता है जोकि काफ़ी मनभावन दिखाई देता है। मुझे यह जगह काफ़ी अच्छी लगी और मैं देर तक गिरते पानी को निहारता रहा। इस जगह से पश्चिमी घाट की श्रेणियों का भी सुंदर नज़ारा दिखायी देता है।
मन इस जगह पर एक बार लग जाता है तो वक़्त का पता नहीं चलता।
चिन्नक्कनाल से लगभग सात किलोमीटर की यात्रा करने पर आनयिरंगल पहुँचा जा सकता है जबकि आनयिरंगल मून्नार से 22 किमी दूर है, इस जगह पर चाय के बागान ही बागान दिखाई देते हैं। एक तरह से देखा जाये तो पूरा आनयिरंगल बांध चाय के बागों और सदाबहार वनों से घिरा हुआ है। यह जगह भी मुझे काफ़ी अच्छी लगी और मैं देर तक चाय के बागानों में घूमता रहा।
एक और जगह जहां जाने की मेरी इच्छा थी वह है टॉप स्टेशन जो कि मुन्नार से लगभग 32 किमी की दूरी पर पड़ता है। यह समुद्र तल से लगभग 1700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित मून्नार-कोडैक्कनल रोड का सबसे ऊंचा बिंदु है जहां से आसपास का बहुत ही ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है। इसी ख़ूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए लोग इस जगह पर खींचे चले आते हैं।
हमने तय किया कि सबसे पहले टॉप स्टेशन जायेंगे और फिर वापसी में चाय संग्रहालय देखने। टॉप स्टेशन पहुँचकर हमने तक़रीबन दो घंटे बिताया और फिर चाय संग्रहालय पहुंचे। चाय के बागानों की शुरुआत और विकास की बात होती है तो कहीं ना कहीं मुन्नार (Munnar Kerala) का नाम आ ही जाता है और आए भी क्यों नहीं यह जगह अपनी शुरुआती दौर से ही चाय उत्पादन के लिए जानी जाती है।
एक तरह से देखा जाए तो मुन्नार (Munnar Kerala) में चाय की अपनी एक विरासत है। इस विरासत के बारे में जानने के लिए मून्नार में टाटा टी द्वारा एक संग्रहालय खोला गया है। चाय के इस संग्रहालय में कई तरह की मशीनरी रखी गई है। इस संग्रहालय में रखी गई हर एक चीज़ मुन्नार के चाय बाग़ानों और विकास की कहानी कहती जान पड़ती है।