जिन चीजों के बारे में हम नहीं जान पाते उसे ही रहस्य मान लेते हैं। मणिमहेश झील के सन्दर्भ में भी कुछ ऐसा ही है। इस झील की उत्पत्ति कब और कैसे हुई किसी को नहीं पता। इसलिए यह हम घुमक्कड़ों के लिए यह यात्रा (Manimahesh Yatra) एक रहस्य के रूप में सामने आती है और हम उस रहस्य तक पहुंचने के लिए बार-बार उस जगह पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। इस मध्य वह रहस्य और भी गहरा होता जाता है और हम परस्पर उसी में उलझते चले जाते हैं।
कुछ ऐसे ही रहस्य मणिमहेश यात्रा के दौरान भी खुलते हैं।
हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी में चार हजार मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश एक पवित्र स्थल है जो महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ बहुत सारे रहस्यों से भी भरा हुआ है। इस जगह की खूबसूरती, कठिन रास्ते और खतरनाक चढ़ाई इस जगह को और भी अनोखा बना देते हैं। इतना अनोखा कि जिसे देखने और इससे जुड़ी गुत्थियों को सुलझाने की हममें एक चाह पैदा होने लगती है और हम यात्रा पर निकल जाते हैं। लेकिन यह यात्रा (Manimahesh Yatra) इतनी भी आसान नहीं है।
मणिमहेश की यात्रा (Manimahesh Yatra) से पहले मणिमहेश यात्रा की तैयारी करनी पड़ती है। निकलने से पहले मौसम का ख्याल रखना पड़ता है। और सभी चीजें हमारे पक्ष में हों तब हम यात्रा की सोच पाते हैं। यदि आप भी हमारी तरह ही मणिमहेश की यात्रा के बारे में सोच रहे हैं तो आपको बता दूं कि लाहुल और स्पीति से कुट्टी दर्रे से यात्रा मणिमहेश पहुंच सकते हैं। एक अन्य मार्ग कांगड़ी और मंडी से भरमौर में होली के पास, करारी गांव या जालसू पास से टायरी गांव तक जाने के लिए है।
भरमौर तक पहुंचने का सबसे आसान और सुविधाजनक तरीका है हसदर-मणिमहेश मार्ग जिसमें हडसर गांव से मणिमहेश झील तक 13 किमी की ट्रेक शामिल है। इस मार्ग से दो दिन का समय लगता है जिसमें धनोचो में रात भर का ठहराव भी शामिल है। ट्रेक का मार्ग काफी अच्छा है, सुरम्य है और एक अद्भुत यात्रा का अनुभव कराता है। आप चाहें तो चम्बा या फिर भरमौर से हेलिकॉप्टर से भी मणिमहेश जा सकते हैं। हेलिकॉप्टर आपको गौरी कुंड तक छोड़ देगा उसके बाद एक किमी का रास्ता आपको ट्रैक करके पहुंचना होगा।
मणिमहेश का खूबसूरत मार्ग दुनिया भर के ट्रेकर्स के लिए ट्रेकिंग का बहुत ही खूबूसरत और लाजवाब विकल्प देता है। इसलिए मणिमहेश झील सिर्फ श्रदालुओं ही नही बल्कि ट्रेकर्स के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। पर्वत प्रेमियों और ट्रेकर्स की मानें तो मणिमहेश ट्रेक देश के सबसे खूबसूरत और रोमांचक ट्रेक्स में से एक है।
मणिमहेश के लिए सबसे लोकप्रिय और सबसे आसान ट्रेक एक छोटे से शहर हडसर से शुरू होता है। ट्रेक की शुरुआत पहले कुछ किमी की मामूली चढ़ाई से शुरू होती है लेकिन उसके बाद, मार्ग पहले मणि महेश धारा को पार करने की दिशा में काफी ऊपर नीचे की कठिन चढ़ाई में परिवर्तित हो जाता है। फिर एक किमी की चढ़ाई के बाद आप धनचो पहुंचेंगे जहां ज्यादातर सैलानी एक रात रूककर आगे का ट्रेक सुबह पूरा करते हैं। हालांकि यह पूरा ट्रेक (Manimahesh Yatra) एक दिन में पूरा किया जा सकता है।
धनचो से ट्रेक फूलों और औषधीय जड़ी-बूटियों की घाटी से होकर सुंदरसी तक जाता है। सुंदरसी से, दो ट्रेकिंग मार्ग उपलब्ध हैं। पहला ट्रेक सुविधाजनक ट्रेक है जबकि दूसरा थोड़ा अधिक कठिन है जो भैरव घाटी के माध्यम से गौरीकुंड तक पहुंचता है। यदि आप गौरीकुंड से पहला रास्ता लेते हैं तो मणि महेश नाले को पार करते हुए अंत में ग्रेडिएंट के बाहर निकलेंगे।
रास्ता काफी दुर्गम और दूर इसलिए इस जगह से बहुत सारे पौराणिक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं।
मणिमहेश झील की उत्पत्ति से कई अलग-अलग किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है की भगवान शिव ने देवी पार्वती से शादी करने के बाद झील का निर्माण किया। यह भी माना जाता है कि इस क्षेत्र में होने वाले हिमस्खलन और बर्फानी तूफान शिव की नाराजगी के कारण होते हैं। कई पौराणिक कथाओं में इस भूमि को हिंदू के तीन प्रमुख राजाओं ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का निवास स्थान बताया गया है।
मणिमहेश झील को शिव के स्वर्ग की झील, एक ढेंचू झरना को विष्णु का प्रतीक और भरमौर शहर के सामने के टीले को ब्रह्मा का स्वर्ग कहा जाता है। मान्यता है कि शिव अपने स्वर्ग में 6 महीने तक निवास करते हैं और बाद में वर्ष के बाकी हिस्से के लिए विष्णु को शासन सौंपते हैं। इस आध्यात्मिक आदान-प्रदान का दिन जन्माष्टमी पर पड़ता है और जिस दिन शिव मणिमहेश लौटते हैं, उस दिन को ही शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
मणिमहेश यात्रा (Manimahesh Yatra) इस पवित्र तीर्थ स्थल का सबसे प्रमुख आकर्षण है जो साल में एक बार की जाती है।
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