हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम। चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर कुम्भ मेला (Kumbh Mela) हर 12 वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है। परन्तु ग्रहों की दशा-दिशा बदलने की वजह से इस बार यह पर्व बारह की जगह ग्यारह वर्ष पर हरिद्वार में मनाया जा रहा है।
एक पौराणिक कथा है कि दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था और देवराज इंद्र को दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण कष्ट भोगने पड़ रहे थे। इस स्थिति से निवारण के लिए जब सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने दैत्यों से संधि कर समुद्र मंथन का उपाय सुझाया। यह लीला आदि शक्ति ने एक बहुत नेक उद्देश्य के लिए रची थी। देव और दैत्यों ने मिलकर जब कई दिनों तक समुद्र मंथन किया तो उसमें से कुल 14 रत्न निकले।
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कुम्भ मेले से जुड़ी कहानी
समुंद्र मंथन का तार कुंभ से भी जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड के चारों धामों, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिये प्रवेश द्वार हरिद्वार में ज्योतिष गणना के आधार पर ग्रह नक्षत्रों के विशेष स्थितियों के आधार पर हर बारहवें वर्ष कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है। मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति होने से हरिद्वार में कुम्भ का योग बनता है और कुम्भ मेला (Kumbh Mela) मनाया जाता है। अगर पौराणिक संदर्भ ढूंढे तो तमाम तरह की कथाओं के माध्यम से पता चलता है कि देव और दैत्यों में संघर्ष की वजह से सागर मंथन जैसा कार्य सम्पन्न हुआ।
सागर में से एक-एक कर चौदह रत्न निकले और जब धन्वंतरि देव अमृत का कुम्भ लेकर निकले तो देव और दानव दोनों ही अमृत की प्राप्ति को साकार देखकर उसे प्राप्त करने के लिये उद्यत हो गये। इसी बीच इन्द्र के पुत्र जयन्त ने धन्वन्तरि से अमृत कुम्भ छीना और भाग खडा हुआ। कुम्भ की रक्षा के लिये देव और दैत्य दोनों ही 12 सालों तक जयन्त के पीछे भागते रहे।
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इस अवधि में उसने 12 स्थानों पर यह कुम्भ रखा। जहां-जहां कुम्भ रखा गया वहां-वहां अमृत की कुछ बूंदें छलक कर गिर गई और वे पवित्र स्थान बन गये। इसमें से आठ स्थान, देवलोक में तथा चार स्थान भू-लोक अर्थात भारत में है। इन्हीं बारह स्थानों पर कुम्भ मेला (Kumbh Mela) मनाने की बात कही जाती है। चूंकि देवलोक के आठ स्थानों की जानकारी हम मनुष्यों को नहीं है अतएव हमारे लिये तो भू-लोक में स्थित चार स्थानों का विशेष महत्व है। यह चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नाशिक हैं।
हमारे धार्मिक ग्रंथों में इस जगह के महत्व को बहुत ही अच्छे से बताया गया है। विदेशी यात्री जो सदियों पहले भारत घूमने के लिए आए उन्होंने भी इस जगह के महत्व के बारे बताया है। जीवन देने वाले इस पवित्र स्थल पर कुछ स्थितियां उत्पन्न होती रही हैं जिनमें हजारों लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है। बावजूद इसके इस जगह की महिमा कम नहीं हुई। कुंभ मेला (Kumbh Mela) धरती की वह जगह है, जहां किसी एक उद्देश्य के लिए सबसे ज्यादा लोग इकट्ठा होते हैं।
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समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न
समुद्र मंथन से निकला हलाहल
समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले विष निकला। इस जहर के प्रभाव से सृष्टि नष्ट न हो जाए। भगवान शिव ने इसे पी लिया जिसकी वजह से उनका गला नीला पड़ गया। यही कारण है कि भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है।
समुद्र मंथन से निकला घोड़ा
समुद्र मंथन के दौरान एक सात मुख वाला सफेद रंग का घोड़ा भी निकला था। ऐसा बताया जाता है कि इस घोड़े को राजा बलि ने अपने पास रखा था जिसे इन्द्र ने ले लिया था। तारकासुर ने जिसे इन्द्र से इसे छीन लिया थे लेकिन उसे पराजित कर इंद्र ने वापस ले लिया था।
समुद्र मंथन से निकला ऐरावत
समुद्र मंथन के दौरान दिव्य शक्तियों से भरा एक सफ़ेद रंग का हाथी भी निकला था। रत्नों के बॅटवारे के समय इंद्र ने इस हाथी को भी अपनी सवारी के लिए ले लिया था।
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समुद्र मंथन से निकला कौस्तुभ मणि
समुद्र मंथन के दौरान निकले इस मनी को भगवान विष्णु ने धारण किया था। माना जाता है कि अब इस तरह की मणि सिर्फ़ इच्छाधारी नागों के पास ही बची है। यह भी कहा जाता है कि यह समुद्र में समा गए द्वारका नगरी में होनी चाहिए।
समुद्र मंथन से निकली कामधेनु
समुद्र मंथन के दौरान एक गाय भी निकली जिसे कामधेनु कहा जाता है। यह गाय तरह तरह की दिव्य शक्तियों से भारी हुई थी। लोक कल्याण की सिद्दी के लिए यह गाय ऋषियों को दे दी गई थी।
समुद्र मंथन से निकलापारिजात
समुद्र मंथन के दौरान पारिजात का फूल भी निकला था जोकि अपनी ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता है। यह बहुत ही पवित्र माना जाता है जिसका उपयोग पूजा पथ में किया जाता है।
देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति
समुद्र मंथन से ही देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं थी। यह अवतरण कई मायने में महत्वपूर्ण माना गया है। देव और दानव देवी लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छ रखते थे लेकिन माता लक्ष्मी ने विष्णु जी का वरण किया।
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अप्सरा रंभा की उत्पत्ति
समुद्र मंथन से एक दक्ष नृत्यांगना भी निकली थी जिन्हें रंभा के नाम से जाना जाता है। यह हमारे भारतीय जनमानस में सौंदर्य का प्रतीक बन गई हैं। इनका स्थान इंद्रलोक में है, ये वहाँ पर अपने नृत्य से देवों का मनोरंजन करती हैं।
समुद्र मंथन से निकला कल्पवृक्ष
समुद्र मंथन से निकले कल्पवृक्ष को कल्पतरु भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर कल्पना करने मात्र से ही इंसान की मनोकामना पूरी हो जाती है। इसकी जगह सुरकानन में है।
वारुणी देवी की उत्पत्ति
समुन्द्र मंथन के दौरान मदिरा लिए हुए वारुणी देवी भी प्रकट हुईं थी। भगवान की अनुमति के बाद इन्हें असुरों को सौंप दिया गया। इसीलिए मदिरा का सेवन असुरिय प्रवृति मानी जाती है।
पाच्चजन्य शंख की उत्पत्ति
समुन्द्र मंथन के दौरान रत्न के रूप में शंख की उत्पत्ति हुई। यह शंख भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया गया। इसीलिए लक्ष्मी-विष्णु पूजा में शंख को अनिवार्य रूप से बजाया जाता है।
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चंद्रमा की उत्पत्ति
समुन्द्र मंथन के दौरान निकले चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने सिर पर जगह दिया है। इसे हम कई मंदिरों और किताबों में देख सकते हैं कि किस तरह से चंद्रमा शोभायमान है।
धन्वंतरि देव की उत्पत्ति
भगवान धन्वंतरी देव की उत्पत्ति का आधार भी समुन्द्र मंथन ही है। इनको विष्णु का अंश कहा जाता है। इन्होंने मानव और समस्त लोक के कल्याण के लिए आर्युवेद बनाया और इसका ज्ञान दिया।
समुद्र मंथन से निकला अमृत
समुद्र मंथन के पश्चात जब धन्वंतरि देव बाहर निकलकर आए तो उनके हाथ में अमृत कलश था। भगवान विष्णु ने उनसे लेकर इस अमृत को देवताओं में बांटा जिससे सभी देवता अमर हो गए।
इन सभी चौदह रत्नों को लोक कल्याणकारी बताया गया है। इसलिए इस जगह और यहां आयोजित होने वाले कुंभ मेले (Kumbh Mela) का महत्व बढ़ जाता है। इस जगह पर ज़रूर आना चाहिये।