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पर्यटन स्थल

बौद्ध मठों के लिए प्रसिद्ध किब्बर गांव की जादुई यात्रा

किब्बर गांव

हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक रूप से बहुत ही अलग और अनोखी जगह है। यहां के पहाड़ों, नदियों, जंगलों को देखकर मन में एक जादुई अहसास उतर आता है। ऐसा ही एक जादुई गांव है किब्बर जहां पहुंचकर लगता है कि हम किसी और दुनिया में आ गए हैं। किब्बर गांव दुनिया में सबसे ऊंचाई पर बसा गांव है। ये दुनिया भर में अपने प्राकृतिक परिदृश्यों और बौद्ध मठों के लिए जाना जाता है। किब्बर गांव में बनी मॉनेस्ट्री सबसे अधिक ऊंचाई पर बनी हुई है।

यह दिल्ली से 750 और शिमला से तकरीबन 430 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। किब्बर पहुंचने के लिये कुंजम दर्रे से होकर स्पीति घाटी पहुंचना होता है। दिल्ली से शिमला तक जाना आसान है लेकिन शिमला से काज़ा तक पहुंचने के लिए कुल 12 घंटे का पहाड़ी रास्ता है जिसको पार करना कठिन तो होता है पर यात्रा का रोमांच आपकी थकान को काफी हद तक कम कर देता है। काज़ा से किब्बर जाने में महज़ एक घंटा लगता है।

इस जगह पर रास्ते में आपको कई बौद्ध मठ दिखाई देंगे। जगह-जगह बर्फ की चादर जमी मिलेगी। घाटी में पहुंचने पर सबसे पहले स्पीति नदी का दीदार होता है और फिर नदी के दांई तरफ बसे एक गांव का जिसका नाम लोसर है। लोसर स्पीति घाटी का पहला गांव है। किब्बर के आसपास के सभी गांवों में बने घरों से आपको तिब्बती वास्तुकला की झलक मिलेगी।

इस गांव की सबसे ख़ास बातों में शुद्ध प्राकृतिक वातावरण, स्थानीय बौद्ध मठ, प्राचीन तिब्बती संस्कृति, किब्बर वन्यजीव अभयारण्य है। अगर आप किब्बर आते हैं तो इन चीजों को देखना और महसूस करना बिलकुल भी नहीं भूले। किब्बर तथा आसपास स्थित मैं आपको कुछ और भी जगहों के बारे में आपको विस्तार से बता देता हूं ताकि आपकी किब्बर यात्रा यादगार बन सके।

किब्बर वन्यजीव अभयारण्य

यह किब्बर वन्यजीव अभयारण 1992 में वन्यजीवों के संरक्षण हेतु बनाया गया था। यह कुल 1400 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें तरह तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां अब तक लगभग चालीस हिम तेंदुए खोजे गए हैं। इसके अलावा इस अभयारण में आपको तिब्बती वुल्फ, इबेक्स, तिब्बती वूली हरे, पेल वीसेल, भारल, तिब्बती जंगली गधा और लाल लोमड़ी भी मिल जायेंगे। ग्रिफन्स, दाढ़ी वाले ईगल और स्नो कॉक जैसे हिमालयन बर्ड्स भी आपको अभयारण्य में मिल जायेंगे। यह जगह अपनी पारंपरिक दवाओं के लिए भी जानी जाती है। इस जगह पर ठहराने और घुमाने के लिए कई स्थानीय ऑपरेटर और होमस्टेस संचालक टूर और ट्रेक का आयोजन करते हैं।

किब्बर के प्रमुख पर्यटन स्थल

चिचम

किब्बर की ही तरह चिचम भी एक छोटा सा गांव है जो 1000 फीट गहरे घाट के ऊपर बने स्टील के पुल के लिए जाना जाता है। यह पुल सतह से तक़रीबन 150 मीटर ऊंचा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इससे पहले आसपास के लोग एक खतरनाक रोपवे का इस्तेमाल करके इस पार से उसपार आवाजाही किया करते थे। इस पुल के बनने से ग्रामीणों को काफी सुविधा हुई। इस पुल के निर्माण में 14 साल का समय लगा।

गेटे

किब्बर से तक़रीबन 7 किमी दूर गेटे भी एक गांव जो आसपास के लोगों को ट्रैकिंग का विकल्प देता है। इस गांव से काफी पहले ही मोटरेबल रोड ख़त्म हो जाता है और लोगों के पास सिर्फ एक विकल्प पैदल चलकर जाना होता है। इस जगह पर पहुंचने में आपको असुविधा तो होगी लेकिन आसपास के वातावरण और गांव को देखकर आपका मन हराभरा हो जायेगा।

ताशीगंग

आप यदि गेटे जा रहे हैं तो आप उसी दौरान ताशीगंग की यात्रा भी कर सकते हैं। यह स्पीति घाटी का सबसे ऊंचा गांव माना जाता है और इससे भी अलग बात यह कि भारत-तिब्बत सीमा के पास स्थित ताशीगंग में कुल चार घर हैं। यह चारो ही तिब्बती शैली में निर्मित हैं। स्थानीय लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि करते हैं।

किब्बर मठ

गांव में एक मठ भी है जिसे किब्बर मठ के नाम से जाना जाता है। इस स्थानीय मठ का बौद्ध धर्म के लिए बहुत बड़ा महत्व है। इस जगह पर दलाई लामा के गुरु सेरकॉन्ग रिनपोछे ने अपना अंतिम समय इस स्थान पर ही बिताया था और उन्होंने ही इस मठ की स्थापना की थी। 1983 में इसी जगह पर उनकी मृत्यु भी हुई थी जिसकी वजह से यह जगह काफी प्रसिद्ध है।

किब्बर के आसपास के स्थल

चंद्रताल झील

किब्बर से 46 किलोमीटर दूर चंद्रताल झील समुद्र तल से तक़रीबन 4300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित देश की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है। इस झील का नाम चंद्रताल इसके आकार की वजह से पड़ा है। यह झील स्पीति और कुल्लू घाटी की यात्रा के दौरान एक अस्थायी निवास के रूप में काम करती है। इस जगह पर तिब्बती व्यापारी विश्राम करने के लिए रुकते हैं। चंद्रताल को टूरिस्ट और ट्रेकर का स्वर्ग कहा जाता है। यह झील दुनिया भर से ट्रैवेलर्स को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस पवित्र झील के पानी का रंग दिन ढलने के साथ लाल से नारंगी और नीले से हरे रंग में बदलता रहता है।

काई मठ

भारत के लाहौल और स्पीति जिले में स्थित काई मठ एक प्रसिद्ध तिब्बती बौद्ध मठ है। यह मठ आतिशा के छात्र ड्रोमटन के द्वारा 11 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। इस जगह पर देश विदेश से सैलानी आते हैं। समुद्र तल से 4,166 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मठ स्पीति नदी के बहुत करीब है। काई मठ किब्बर से 6 किलोमीटर दूर है और इसे की मठ के नाम से भी जाना जाता है।

कुंजुम दर्रा

किब्बर से 58 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस दर्रे को कुंजुम ला के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। यह समुद्र तल से 4,551 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और देश के सबसे ऊंचाई पर स्थित मोटरेबल माउंटेन पास में आता है। यह पास मनाली से करीब 122 किमी की दूर कुल्लू और लाहौल से स्पीति घाटी के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। कुंजुम पास से प्रसिद्ध चंद्रताल झील जाने के लिए 15 किमी की ट्रेकिंग रह जाती है।

धनकर झील

किब्बर से धनकर झील की दूरी 52 किलोमीटर है। अच्छा होगा कि पहले आप धनकर मठ जाएं और फिर धनकर झील। मठ से 5 किमी की दूरी पर खतरनाक चट्टानों के पास पहाड़ के दूसरी तरफ धनकर झील स्थित है। तक़रीबन एक घंटे का सफर करने के पश्चात्आ आप इस झील पर पहुंचकर शांति और सकून भरा समय बिता सकते हैं। झील के किनारे बैठकर आकाश के बदलते रंगों को देखना बहुत अच्छा लगता है।

धनकर मठ

लाहौल और स्पीति जिले में स्थित धनकर मठ को 100 सबसे लुप्तप्राय स्मारकों में सूचीबद्ध किया गया है। एक हजार साल पहले निर्मित यह मठ बौद्ध कला और संस्कृति का मुख्य केंद्र और एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह मठ एक चट्टान के किनारे पर अविश्वसनीय रूप से झुका हुआ है। स्पीति और पिन नदियों के संगम के छू लेने वाले दृश्य बहुत ही मनभावन होते हैं। इस जगह से स्पीति घाटी के मनोरम दृश्यों को देखा जा सकता है।

शशूर मठ

मनाली से 35-40 किमी दूर लाहौल स्पीति जिले में स्थित शशूर मठ ड्रग्पा संप्रदाय का एक बौद्ध मठ है। यह मठ एक तीन मंजिला संरचना है। स्थानीय भाषा में नीले चीड़ को शशूर कहा जाता है। मठ के चारों ओर नीले देवदार के पेड़ पाए जाते हैं। इसीलिए इसका नाम शशूर मठ पड़ा। इस मठ की आंतरिक साज सज्जा और वास्तुकला अद्भुत है। मठ से आसपास के पहाड़ों और कीलोंग शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। इस मठ को 7 वीं शताब्दी में स्थापित गया था।

काजा

किब्बर की काजा की दूरी 18 किलोमीटर है। स्पीति नदी के मैदानों पर बसा यह हिमाचल प्रदेश का एक शांत जगह है। बर्फ से ढंके पहाड़, निर्झर बहती नदी और सुरम्य बंजर परिदृश्यों से घिरे काजा की यात्रा किसी सपने के सामान है। दो भागों में विभाजित इस जगह को पुराने काजा और नए काजा के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक में क्रमशः सरकारी कार्यालय और राजा का महल है। मठ, गोम्पा और अन्य ऐतिहासिक स्थल इस शहर के पुराने जादुई आकर्षण है।

काजा आज आधुनिकता और अनूठी प्राचीन संस्कृति का अद्भुत मिश्रण है जो अपने रहस्य से किसी को भी मुग्ध कर देगा। यह अपने रंगीन त्योहारों और शहर से 14 किमी दूर एक साइड घाटी में प्राचीन शाक्य तंगयूड मठ के लिए भी प्रसिद्ध है।

बारलाचा ला

हिमाचल प्रदेश में लेह-मानगढ़ राजमार्ग के साथ स्थित बारलाचा ला को बारलाचा पास के नाम से भी जाना जाता है। यह समुद्र तल से 16,040 फीट की ऊंचाई पर ज़ांस्कर श्रेणी के अंतर्गत आता है। यह आठ किलोमीटर लंबा दर्रा लाहौल जिले को जम्मू और कश्मीर के लद्दाख से जोड़ता है। इस पास से कुछ किलोमीटर की दूरी पर आपको भगा नदी मिलेगी जो चेनाब की सहायक नदी है और सूर्य ताल झील से निकलती है। बारालाचा दर्रा कई खूबसूरत स्थलों से घिरा हुआ है, जो कि लोगों को बेहद आकर्षित करते हैं।

त्रिलोकीनाथ मंदिर

त्रिलोकीनाथ मंदिर लाहौल और स्पीति जिले के त्रिलोकीनाथ गांव में स्थित है। यह दुनिया में एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर हिंदू और बौद्ध दोनों पूजा करते हैं। हिन्दुओं द्वारा इस मंदिर में ‘भगवान शिव’ की पूजा की जाती है और बौद्ध इसे आर्य अवलोकितेश्वर के रूप में देखते हैं। हालांकि, यह माना जाता है कि त्रिलोकीनाथ मंदिर मूल रूप से एक बौद्ध मठ था।

पिन वैली नेशनल पार्क

किब्बर से 48 किलोमीटर दूर पिन वैली नेशनल पार्क लाहौल और स्पीति जिले में स्थित कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व में स्थित है। इसका कोर ज़ोन 675 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसका बफर ज़ोन लगभग 1150 वर्ग किमी में विस्तारित है। इसकी उंचाई लगभग 3,500 मीटर से लेकर इसके शिखर तक 6,000 मीटर से अधिक है।

इसे प्रसिद्ध हिमालयी हिम तेंदुओं और उनके शिकार, इबेक्स की दुर्लभ प्रजातियों के लिए जाना जाता है। वर्तमान में यह लुप्तप्राय हिम तेंदुए, तरह तरह की वनस्पतियों और जीवों की लगभग 20 से अधिक प्रजातियों का घर है। पिन वैली नेशनल पार्क ट्रेवलर्स और ट्रेकर्स के बीच अपने अविश्वसनीय ट्रेक के लिए सबसे प्रसिद्ध है। इस ट्रेक पर साल में ज्यादातर समय बर्फ रहती है।

घूमने का सही समय

किब्बर घूमने के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई से अक्टूबर तक होता है। इस समय किब्बर का ठंडा मौसम सहन करने योग्य होता है। अन्यथा सर्द के मौसम में रात में यहां का तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। बर्फ गांव की सुंदरता को बढाती है। लेकिन सदियों के मौसम में यहाँ रोहतांग दर्रा बंद हो जाता है, यह दर्रा गर्मियों के दौरान ही खुलता है। मानसून के दौरान किब्बर की यात्रा करना सही समय नहीं है क्योंकि इस दौरान भूस्खलन का खतरा है।

किब्बर में खानपान

स्पीति घाटी में खाने के सीमित विकल्प उपलब्ध हैं। किब्बर में जौ, मटर और आलू जैसी ताजा उगाई जाती है। इस जगह पर कई गेस्टहाउस और होमस्टे हैं जो जौ के आटे और याक पनीर से बने पारंपरिक स्पिरिट फूड जैसे जौ की खीर, तिब्बती ब्रेड उपलब्ध कराते हैं। देशेख होमस्टे, नॉर्लिंग गेस्टहाउस, ताशी ज़ोम और सरखंग होमस्टे कुछ ऐसे रेस्टोरेंट हैं जहां के खाने को आप आजमा सकते हैं।

किब्बर कैसे जाएं ?

दिल्ली से तकरीबन 730 किलोमीटर दूर किब्बर जाने के लिए काजा पहुंचना होगा। काजा से किब्बर जाने के लिए आपको 1000 से 1200 रुपये में टैक्सी या कैब मिल जाएगी। काजा से एक घंटे में किब्बर पहुंचा जा सकता है। किब्बर में ठहरने के लिए आपको होमस्टे की सुविधा मिल जाएगी। बस स्टैंड के पास कई होटल भी हैं। यहां आप होटल में ठहर सकते हैं।

travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।