हिमालय के कण कण में रहस्य विद्यमान है। हम जैसे जैसे इन रहस्यों को समझने की कोशिश करते हैं ये उतने ही गहरे होते जाते हैं। पिछले दिनों देवभूमि उत्तराखंड में स्थित कालीमठ घाटी (Kalimath Valley) को समझने के क्रम में भी बिल्कुल यही हुआ और सोचा क्यों ना इस जगह की एक यात्रा कर ली जाये। फिर क्या था एक-दो दिन मन को तैयार करने में लगा और अगले दिन हम दिल्ली से बस लेकर रुद्रप्रयाग पहुंचे और फिर गुप्तकाशी होते हुए सीधे कालीमठ।
कालीमठ घाटी (Kalimath Valley) सदियों से महान साधको की तपस्थली रही है और कालीमठ शक्तिपीठ की वजह से देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। किवदंती है कि माता सती ने पार्वती के रूप में दूसरा जन्म इसी शिलाखंड में लिया था। कहा यह भी जाता है कि कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था। उसका रक्त जमीन पर न पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उसके रक्त को चाटना शुरू किया।
इस शिला को रक्तबीज शिला के नाम से जाना जाता है जोकि नदी किनारे पर आज भी मौजूद है।
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कुछ विद्वानों का ये भी मानना है कि इसी जगह कविल्ठा गांव में कालिदास का जन्म हुआ था। कालिदास ने यहीं पर अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी और यहीं पर उन्होंने मेघदूत, कुमारसंभव और रघुवंश जैसे महाकाव्यों की रचना की थी। मुझे यह जानकर काफी अच्छा लगा और समझ में आया कि इस जगह पर काफी कुछ है। हम सबसे पहले कालीमठ शक्तिपीठ पहुंचे। काली माता का दर्शन किया और फिर निकल पड़े बाकी घाटी को एक्सप्लोर करने के लिए।
इस जगह पर घूमते हुए मुझे कालीमठ घाटी (Kalimath Valley) के साथ साथ चामुंडा देवी शक्तिपीठ के बारे में पता चला और समझ में आया कि यह जगह धार्मिक रूप से जितनी समृद्ध है उससे भी कहीं ज्यादा पौराणिक है। कई तरह की कहानियां, कई तरह के किस्से और घूमने-टहलने के लिए बहुत सारी जगहें। दर्शन के उपरांत हम उस जगह पर जाना चाहते थे जहां कालिदास का जन्म हुआ था पर यहां जाने के लिए लगभग चार किमी का ट्रेक करना था इसलिए नहीं जा सके।
थोड़ा और आगे बढ़े तो एक और जगह रूच्छ महादेव के बारे में पता चला। सरस्वती और मनणी नदी के संगम पर बसी यह जगह दर्शनीय होने के साथ साथ बेहद पौराणिक है। कहा जाता है कि काली माता रक्त बीज के संहार के बाद बहुत ही क्रोधित थी। उनके क्रोध को रोक पाना किसी के भी वश की बात नहीं थी तो शिव भगवान खुद उनके सामने आकर लेट गए थे और माता ने उनके ऊपर अपना पैर रख दिया था। यह जगह रूच्छ महादेव के नाम से जानी जाती है।
बताया जाता है कि रूच्छ महादेव की स्थापना ऋषि वशिष्ठ ने किया था।
महादेव का यहां कोई मंदिर नहीं है, इस तीर्थ में भगवान शंकर की शिला रूप पूजा की जाती है। रूच्छ महादेव की महिमा का वर्णन हमारे काव्य ग्रंथ केदारखण्ड में भी बहुत ही विस्तार से किया गया है और पुराणों में इस जगह का वर्णन उत्तर गया के नाम से मिलता है! कहते हैं कि जो लोग रुच्छ महादेव में स्नान एवं तर्पण करके पिण्डदान करते हैं वे अपनी एक सौ साठ पीढियों को तार देते हैं।
पिण्डदान के लिहाज़ से देखें तो सबसे अच्छी जगह गया को बताया जाता है पर मनुष्य को इस जगह पर पिण्डदान करने से बिल्कुल वही फल मिलता है जो गया में करने से मिलता है।
मैंने महादेव का दर्शन किया और उसके ऊपर स्थित मंदिर के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि यह भगवती कोटि माहेश्वरी का मंदिर है। बताया जाता है रक्त बीज के संहार के बाद खून की जितनी बूंदे गिरती उतने राक्षस पैदा होते जाते थे इसलिए माता भगवती ने कोटि यानि की कइयों रूप में जन्म लेकर रक्त बीजो का संहार किया था।
हमने माता का दर्शन किया और दो रुद्राक्ष के पेड़ भी देखे और आगे बढ़ गए।
आगे बढ़ते हुए यह संपूर्ण कालीमठ घाटी (Kalimath Valley) मुझे किसी रहस्य से कम नहीं लगी और हमें मनणी गुप्त शक्तिपीठ के बारे में भी पता चला। पर उस जगह पर जाने के लिए चौमासी गांव पहुंचना था जहां से तकरीबन कइयों किमी का पैदल ट्रेक करके मनणी बुग्याल पहुंचना था जहाँ मनणी माता का मंदिर स्थिति है। इस यात्रा में मुझे जो सबसे महत्वपूर्ण बात पता चली वह यह है कि यह केदारनाथ पहुंचने का अल्टरनेटिव रुट भी है और इसे विकसित करने के लिहाज से स्थानीय स्तर पर काफी प्रयास किया जा रहा है।
हम एक रात जाल मल्ला गांव में रुके। पहाड़ी घर देखे, भंगजीरा और भांगदाना की चटनी और पराठे का सवाद लिया। अगले दिन कई खूबसूरत यादें लेकर वापस दिल्ली लौट आए।