Menu
पर्यटन स्थल

हुमायूं का मकबरा: मुगलकालीन वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना

Humayun's-Tomb

हम चल रहे हैं एक नए सफर पर, इतिहास के उन पन्नों को पलटने जहां मुग़ल सल्तनत की यादें हैं। वास्तु और शिल्पकला के बेजोड़ नमूने हैं, जो दर्शनीय हैं और लाखों लोगों की आंखों में बसते हैं। जी हां दोस्तों, आज मैं आपको लेकर चल रहा हूं देश की राजधानी दिल्ली में स्थित मुग़ल बादशाह हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) की सैर पर। यह स्मारक दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा स्मारक होने के अलावा भी कई तरह की खूबियों को अपने आपमें समेटे हुए है। फिर चाहे बात संस्कृति की हो, इतिहास, स्थल, स्थापत्य और वास्तुकला की, हर मायने में इसकी विशिष्टता देखते ही बनती है। सोलहवीं शताब्दी में बना हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) कहने को तो एक मकबरा है पर भव्यता ऐसी कि जैसे कि किसी भव्य किले में होती है।

फिर चाहे मुख्य दरवाज़ा हो या फिर मुख्य ईमारत, नजर देखने को उठती और लम्बे समय के लिए ठहर सी जाती है, जैसे ही हम किले के अंदर पहला कदम रखते हैं, खुदको पांच सौ साल पुराने अतीत में इतिहास के उन पन्नों के नीचे दबे हुए पाते हैं जहां से मुग़ल सल्तनत का बनता-बिगड़ता इतिहास हमें इस मकबरे तक लेकर आता है।

इस मकबरे को हुमायूं की याद में उनकी पत्नी हामिदा बानो बेगम ने 1565 में बनवाना शुरू किया था जबकि संरचना का डिज़ाइन मीरक मिर्ज़ा घीयथ नामक पारसी वास्तुकार ने बनाया था। तब से लेकर अब तक के समयकाल में इस स्मारक ने तमाम अच्छे-बूरे दिन देखे, बनने के बाद कई तरह के किस्सों-कहानियों का गवाह बना और अंततः 1993 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया।

वर्तमान में हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) मुगल स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

यह बगीचे युक्त मकबरा चारों तरफ से दीवारों से घिरा है जिसमें सुन्दर बगीचे, पानी के छोटी नहरें, फव्वारे, फुटपाथ और कई अन्य चीजें शामिल हैं। सबसे अच्छी और खूबसूरत बात यह कि यदि आप इस जगह पर घूमने के लिए आते हैं तो इस चहारदीवारी के भीतर कई अन्य समकालीन स्मारकों को भी देख सकते हैं। नाई का मकबरा, नीला गुंबद, ईसा खान का मकबरा, बू हलीमा की कब्र और बगीचा, अफसरवाला मकबरा और मस्जिद हुमायूं के मकबरे से पहले आती हैं।

यह सभी स्मारक मुगलकालीन हैं और अपने आपमें उस समय के इतिहास और स्थापत्य कला का गवाह जान पड़ते हैं।

हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) इस्लामिक दुनिया में किसी भी मकबरे से कहीं ज्यादा बड़ा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का यह पहला नमूना है जो कि 30 एकड़ में फैला हुआ है और कुरान में लिखित जन्नत की चार नदियों के साथ चार बागों की परिकल्पना को साक्षात् रूप में साकार करता है। इस स्मारक के निर्माण से पहले बने किसी भी मकबरे में इस तरह के उद्यान और बाग बाग़ीचे नहीं मिलते हैं।

इस मकबरे का प्रवेश द्वार 16 मीटर ऊंचा है। मुख्य दरवाज़े से अंदर दाखिल होते ही चार बाग और सरोवर का दीदार होता है, जिसमें आकर चार नालिकाएं मुख्य ईमारत की शोभा बढ़ाते दिखाई देती हैं। हरे भरे परिदृश्यों से भरपूर, सुन्दर स्वच्छ वातावरण और दूर-देश से आये तमाम तरह के सैलानी। मुख्य ईमारत को देखकर ऐसा लगता है कि बस अब बरबस उसे ही देखते रहें। इस स्मारक को देखकर सहज ही इस बात का अंदाजा हो जाता है कि यह खूबसूरत होने के साथ अलहदा भी है।

मकबरे का निर्माण पत्थरों को गारे-चुने से जोड़कर किया गया है और लाल बलुवा पत्थर से ढंका हुआ है। इस ईमारत में सफ़ेद संगमरमर का भी प्रयोग भरपूर हुआ है, ख़ासकर खिड़कियों, दरवाजों, छत, छज्जों जैसे सजावटी कार्यों में, मकबरा आठ मीटर ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और इसकी नींव में 56 कोठरियां दिखाई देती हैं जिनमें 150 से भी कहीं ज्यादा कब्रे हैं। यही कारण है कि हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) को मुगलों का शयनगार भी कहा जाता है।

इस मकबरे के चारों तरफ दीवारों के बाडे़ के अन्दर हुमायूं की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं।

मकबरा 47 मीटर ऊंचा और 91 मीटर चौड़ा है, मुख्य ईमारत पर एक बहुत ही खूबसूरत गुबंद बना हुआ है जो सबसे पहले सिकंदर लोदी के मकबरों में बनाया गया था। स्मारक की खूबसूरती को निखारने के लिए गुबंद के ऊपर एक छह मीटर ऊंचा कलश स्थापित है और उसके ऊपर चन्द्रमा लगा हुआ है, जो तैमूर वंश के मकबरों में देखने को मिलता है।

हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) को दिल्ली का ताजमहल भी कहा जाता है क्योंकि इस मकबरे की वही चार बाग शैली है जिसने बाद में ताजमहल जैसी विश्वप्रसिद्ध स्मारक को जन्म दिया। एक तरह से देखा जाए तो हुमायूं के मकबरे को असल पहचान आगरा के ताजमहल के बनने के बाद मिली और यह धीरे-धीरे भारत ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में अपनी पहचान को कायम कर सका। वर्तमान में यह स्मारक मुग़ल वास्तुकला का सबसे खूबसूरत नमूना है।

इस मकबरे की खूबसूरती को देखकर मुग़ल सल्तनत की यादें जिन्दा हो जाती हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि हुमायूं की जिन्दगी में इस मकबरे के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं रहा, ना तो उसे जीते जी सकून मिल सका और ना ही मरने के बाद? ऐसा क्यों कहते हैं इसे समझने के लिए हमें मुग़ल सल्तनत के उन पन्नों को खंगालना होगा जहां से भारत में मुगलों के शासन का शुभारंभ होता है।

तो आइये इस कड़ी में हम मुगलों के इतिहास, शासन और कामकाज की शैली को समझने प्रयास करते हैं। मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, अधिकतर मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे। मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ।

बाबर तैमूर लंग और चंगेज़खान का प्रपौत्र था जो भारत में प्रथम मुगल शासक थे। उसने पानीपत के प्रथम युद्ध में 1526 के दौरान लोधी वंश के साथ संघर्ष कर उन्‍हें पराजित किया और इस प्रकार अंत में मुगल राजवंश की स्‍थापना हुई। बाबर ने 1526 ई से 1530 ई तक शासन किया और उसके बाद उसका बेटा हुमायूं गद्दी पर बैठा।

हुमायूं बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था जिसने अपने पिता के बाद 1530 में राज्‍य संभाला और मुगल राजवंश का द्वितीय शासक बना। दिल्ली स्थित यमुना नदी के किनारे बसा इंद्रप्रस्थ उसे इतना पसंद आया कि ठीक उसी जगह पर अपना नया नगर दीनपनाह पसाया। हुमायूं ने 10 साल तक भारत पर शासन किया। फिर उसे 1540 में अफगानी शासक शेर शाह सूरी ने पराजित किया। अपने निर्वासन काल के ही दौरान हुमायूं ने अपने भाई हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरू मीर अली की पुत्री हमीदाबानों बेगम से 1541 में विवाह किया, कालांतर में इसी से अकबर का जन्म हुआ जो आगे चलकर मुगल वंश का सबसे महान शासक बना।

हुमायूं अपनी पराजय के बाद 15 वर्ष तक काबुल सिंध अमरकोट में भटकता रहा। अंत में ईरान के शासक तहमास्य के पास शरण ली । ईरान के शासक की मदद से उसने काबुल कंधार में मध्य एशिया के क्षेत्रों को जीता। शेर शाह सूरी की मौत के पश्चात् हुमायूं 1555 में उसके अधिकारिओं को परास्त कर वह दुबारा हिन्‍दुस्‍तान की गद्दी पर बैठा तो पाया कि उसके नगर दीनपनाह की जगह एक नया किला बनकर तैयार हो गया है, जो वर्तमान में पुराना किला के नाम से जाना जाता है।

वह यहीं पर रहने लगा और एक साल बाद 1956 में इसी किले में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर उसकी मौत हो गई।

प्रसिद्ध इतिहासकार लेनपूल ने हुमायूं पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि –हुमायूं जीवनभर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाते हुए अपनी जान दे दी।

मौत के पश्चात् उसको दिल्ली के इसी किले में दफना दिया गया। कब्र को नुकसान ना पहुंचाया जा सके इसलिए बाद में खंजरबेग द्वारा पंजाब के सरहिंद ले जाया गया। हुमायूं की मृत्यु के 9 वर्ष बाद हुमायूं के मक़बरे का निर्माण उसकी पत्नी हमीदा बानो बेगम के आदेश के अनुसार अकबर के संरक्षण में हुआ। उस समय इस इमारत को बनाने की लागत 15 लाख रुपये आयी थी। अंतत इसी मकबरे में आकर हुमायूं को आखिरी ठौर मिला।

हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) के अंदर दाखिल होने पर प्रधान कक्ष के चार कोणों पर मेहराबदार दीर्घा से जुड़े चार अष्टकोणीय कमरे दिखाई देते हैं। प्रधान कक्ष की भुजाओं के बीच बीच में चार अन्य कक्ष भी बने हैं। ये आठ कमरे मुख्य कब्र की परिक्रमा बनाते हैं, जैसी सूफ़ीवाद और कई अन्य मुगल मकबरों में दिखती है; साथ ही इस्लाम धर्म में जन्नत का संकेत भी करते हैं। इन प्रत्येक कमरों के साथ ८-८ कमरे और बने हैं, जो कुल मिलाकर 124 कक्षीय योजना का अंग हैं।

हुमायूं की मौत को लेकर बहुत सारी कहानियां हैं। कुछ लोग कहते हैं कि शेर शाह सूरी से बार-बार हारने के पश्चात् उसे अफीम की बुरी लत लग गई थी, वह हमेशा नशे में रहता था और सीढ़ियों से गिरकर उसकी मौत हो गई थी। कुछ लोग कहते हैं कि वह बहुत ही आस्थावान शासक था, धर्म कर्म में बहुत ज्यादा आस्था रखता था और जब भी नमाज़ होती थी घुटनों के बल जमीन पर बैठ जाता था। एक बार जब वह दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से उतर रहा था तभी अजान हो गई और वह बैठने के क्रम में अपना संतुलन खो दिया और सीढ़ियों से गिरने से उसकी मौत हो गई।

यमुना नदी के किनारे मकबरे के लिए इस स्थान का चुनाव इसकी हजरत निजामुद्दीन दरगाह से निकटता के कारण किया गया था। संत निजामुद्दीन दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत थे जिनकी दिल्ली के शासकों की नजर में काफी मान सम्मान और प्रतिष्ठा थी। उनका तत्कालीन आवास भी मकबरे के स्थान से उत्तर-पूर्व दिशा में निकट ही चिल्ला-निजामुद्दीन औलिया में स्थित था।

1572 में इस स्मारक के बनने के बाद मुग़ल स्थापत्य कला को एक नई पहचान मिली और इसके शानों-शौकत में भी काफी इजाफा हुआ परन्तु आरंभिक मुग़ल शासकों ने आगरा को अपनी राजधानी बनाया और शाहजहां द्वारा पुरानी दिल्ली की दीवार के निर्माण के बाद आगरा उनकी स्थायी गद्दी बन गया। जिसकी वजह से इस स्मारक (humayun tomb) का रख-रखाव अच्छे से नहीं हो सका और बुरे दिन शुरू हो गए। बाद के मुग़ल शासकों के पास इतना धन नहीं रहा कि वे मकबरे और चार बाग उद्यान का महंगा रख रखाव वहन कर सकें।

अठारहवीं शताब्दी में यह स्मारक स्थानीय लोगों के कब्जे में आ गया और आसपास कई बस्तियां बस गईं। लोगों ने चार बागों में सब्जी आदि उगाना शुरू कर दिया और चार केंद्रीय सरोवर चार गोल चक्कर में बदल गए। इस किले (humayun tomb) ने अपना वह दौर भी देखा जब मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने तीन अन्य राजकुमारों सहित 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां शरण ली थी। बाद में उन्हें ब्रिटिश सेना के कप्तान हॉडसन ने इसी स्मारक से गिरफ्तार किया और रंगून में मृत्युपर्यन्त कैद कर दिया।

बीसवीं शताब्दी में लॉर्ड कर्ज़न जब भारत के वाइसरॉय बने, तब उन्होंने इसे वापस सुधारा। एक वृहत उद्यान जीर्णोद्धार परियोजना के अंतर्गत नालियों में भी बलुआ पत्थर लगाया गया, पौधारोपण योजना के तहत वृक्षारोपण हुआ। इसके साथ ही अन्य स्थानों पर फूलों की क्यारियां भी दोबारा बनायी गयीं।

भारत के विभाजन के समय पुराना किला और हुमायुं का मकबरा (humayun tomb) भारत से नवीन स्थापित पाकिस्तान को जाने वाले शरणार्थियों के लिये शरणार्थी कैम्प में बदल गये। ये कैम्प लगभग पांच वर्षों तक रहे और इनसे स्मारकों को काफी क्षति पहुंची, खासकर इनके बगीचों, पानी की सुंदर नालियों आदि को। जिसके बाद इसके बचाव के लिए मकबरे के अंदर के स्थान को उस समय ईंट पत्थरों से ढंक दिया गया था जिसे बाद में पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने इसके पुराने रूप में एक बार फिर से स्थापित किया।

हालांकि 1985 तक मूल जलीय प्रणाली को सक्रिय करने के लिये चार बार असफल प्रयास किये गए। 1993 में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया तो इसकी वैश्विक पहचान दोबारा कायम करने में काफी मदद मिली। 2003 में आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा इसका जीर्णोद्धार कार्य सम्पन्न हुआ और इस जीर्णोद्धार के बाद यहां के बागों की जल-नालियों में एक बार फिर से जल प्रवाह आरम्भ हुआ।  

इस तरह से हुमायूं के मकबरे (humayun tomb) का वर्तमान स्वरूप हमारे सामने आ सका।

travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।