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पर्यटन स्थल

एशिया का ऐतिहासिक और सबसे पुराना चर्च सरधना

Roman_Catholic_Church_of_Sardhana

दिल्ली से हरिद्वार यात्रा के दौरान मैंने अपनी साइकिल रोकी और लोगों से पूछा तो पता चला कि इस वक़्त मैं नेशनल हाईवे- 58 पर हूं। यह सरधना (church of sardhana) के आसपास की जगह है। सरधना का नाम सुनते ही मेरे मन में इस बात का भी बोध हो आया कि इस वक़्त मैं एशिया के सबसे पुराने चर्च के आसपास पहुंच चुका हूं।

एक सज्जन ने मेरी जानकारी को थोड़ा और स्पष्ट करते हुए बताया कि लगभग बारह किलोमीटर चलकर चर्च पहुंचा जा सकता है। सुनने और कहने में बारह किमी कुछ नहीं होता लेकिन यदि यात्रा पैदल अथवा साइकिल से करनी हो तो ये दूरी बहुत ज्यादा पड़ जाती है।

दिन भर की साइकिलिंग के बाद मेरा शरीर जवाब दे चूका था। इतनी भी हिम्मत नहीं बची थी कि आगे बढ़ा जा सके पर भला हो उस सज्जन का कि उन्होंने मुझे रास्ता बताने के साथ पास के गांव में रहने वाले अपने एक परिचित का फोन नंबर भी उपलब्ध करा दिया।

मुझे उनकी यह उदारतापूर्ण सहयोग की भावना बहुत अच्छी लगी पर मैं रुक नहीं पाया। दिन भर की थकान लिए देर रात सरधना पहुंचा तो शरीर पूरी तरह से जवाब दे चुकी थी। जिनसे बात हुई थी बहुत सज्जन लोग थे। पहुंचते ही लोगों ने पानी लाकर दिया। मैंने अपने हाथ पैर धुले, मुंह पर ठंडे पानी का छींटा मारा और रात्रि के भोजन के उपरांत बिना किसी से ज्यादा बातचीत किये आंखों में सुबह को सरधना चर्च देखने का सपना संजोये गहरी नींद में सो गया।

रात की थकान की वजह से सुबह विलंब से नींद खुली तो महसूस हुआ कि पूरा पैर जाम हो चुका है। हो भी क्यों नहीं? दिल्ली से अपर गंगा कैनाल होते हुए सरधना तक पहुंचने के लिए मैंने लगातार बारह घंटे साइकिल चलाया था। लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता सामने था। मैंने ब्रेकफास्ट किया और मेरी चर्च (church of sardhana) देखने निकल पड़ा और वहां पहुंचकर मेरी का चर्च देखने के साथ-साथ बेगम सुमरू का राजमहल भी देखा।

बहुत ही सुन्दर और ऐतिहासिक जगह है।

मुख्य गेट पर जैसे ही पहुंचो गिरजाघर की सुन्दर ईमारत बेहद ही मनोरम और मनभावन दृश्य का बोध कराती दिखाई देती है। इससे पहले इस चर्च के बारे में महज़ सुन रखा था और अब देखा तो पाया कि यह जगह हम सबकी कल्पना से भी कहीं खूबसूरत है।

मुख्य मार्ग से चर्च (church of sardhana) तक छायादार व सजावटी वृक्ष लगे हुए हैं तथा चौदह स्मारकों के जरिए जीसस क्राइस्ट की जीवन यात्रा की जानकारी दी गई है। यह स्मारक अपने धार्मिक महत्व के साथ ही साथ स्थापत्य कला के शानदार नमूनों की भी एक खूबसूरत बानगी प्रस्तुत करते हैं।

चर्च के मुख्य दरवाजे में प्रेम और क्षमा की मुद्रा में येशु की मूर्ति को देखकर जीवन की सारगर्भित सीख का अहसास पैदा होता है।

चर्च (church of sardhana) में घुसते ही जिस भव्य मूर्ति पर दृष्टि स्थिर होती है वह येशु मसीह की मां मैरी की विशाल व अप्रतिम मूर्ति है। ये काफी खूबसूरत और भव्य है। जब मैंने देखा तो मेरी नज़र उस मूर्ति पर देर तक ठहरी रह गई और मैं काफी समय तक यीशु की शिक्षाओं और मरियम के बारे में सोचता रहा।

कुछ स्थानीय लोगों ने इस संबंध में मेरी जानकारी में इजाफा करते हुए बताया कि यह मूर्ति बेगम के मौत के बाद के वर्षों में दान स्वरूप प्राप्त हुई थी। जब बेगम ने चर्च बनवाया था तो उनकी इच्छा येशु की मां मरियम को समर्पित कर उन्हें सम्मान देने की थी। पर उन्होंने यह शायद ही कभी सोचा होगा कि एक दिन यह चर्च दुनिया भर में मरियम की स्मृति का अनूठा प्रतीक चिन्ह बन जाएगा।

वर्तमान में यह चर्च एशिया के सबसे पुराने चर्च के रूप में गिना जाता है।

चर्च का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के पश्चात एक और ईमारत जिसे लोग बेगम सुमेरु का महल के नाम से जानते हैं बेगम ने अपने लिए बनवाया था लेकिन वह उसमें ज्यादा दिन तक नहीं रह सकीं। तिरासी वर्ष की अवस्था में उनकी आत्मा ने देह का साथ छोड़ दिया। वह अब नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृतियां सरधना के कण-कण में आज भी विद्यमान हैं।

travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।