हरसिल यात्रा के दौरान भैरवघाटी पहुंचकर ऐतिहासिक गरतांग गली (Gartang Gali) की सीढ़ियों का दीदार करना किसी जन्नत से कम नहीं लगा। हालांकि यह तीन किमी का ट्रैक काफी कठिन है पर रास्तों की खूबसूरती ऐसी की मानों जन्नत में जा रहे हो। संकरे रास्ते, ऊंचे-ऊंचे पेड़ और शांत पहाड़ पर तेज हवाओं का शोर। फिर तरकरीबन तीन से चार घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद आता है एक खूबसूरत सा पुल जिसे गरतांग गली (Gartang Gali) के नाम से जाना जाता है।
आपको बता दूं कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में स्थित यह वही (Gartang Gali) लकड़ी का पुल है जो कभी तिब्बत ट्रैक का हिस्सा हुआ करता था, जिसका निर्माण पेशावर से आए पठानों ने 150 साल पहले किया था ताकि भारत-तिब्बत व्यापार को एक नया आयाम मिल सके लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी कि इसे 1962 की भारत-चीन लड़ाई के बाद बंद करना पड़ गया।
आजादी से पहले तिब्बत के साथ व्यापार के लिए नेलांग वैली होते हुए यह तिब्बत ट्रैक बनाया गया था और गरतांग गली (Gartang Gali) का यह ट्रैक भैरोंघाटी के नजदीक खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर तैयार किया था। इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से उत्तरकाशी के बाड़ाहाट पहुंचाए जाते थे।
इस पुल के बंद हो जाने से लोगों की आवाजाही और यह पूरा रास्ता ही पूरी तरह से बंद हो गया था। इस पुल यानि की गरतांग गली (Gartang Gali) से नेलांग घाटी का रोमांचक दृश्य दिखाई देता है। जिसकी वहज से कई यात्रियों का सपना रहता है कि इस जगह की खूबसूरती को देख सकें। लेकिन नेलांग घाटी सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है।
जिसकी वजह से सदियों से भारत-तिब्बत व्यापार के गवाह रहे इस गरतांग गली (Gartang Gali) पुल को 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद बने हालात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उत्तरकाशी के इनर लाइन क्षेत्र में पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया था। यहां स्थित जो गांव थे उन्हें हरसिल के नजदीक बगोरी गांव में बसा दिया गया था। यहां के ग्रामीणों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में एक ही बार पूजा अर्चना के लिए इजाजत दी जाती रही है।
एक लंबे समय बाद साल 2015 में देश भर के पर्यटकों को नेलांग घाटी तक जाने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से इजाजत दी गई थी जिसका देश भर के पर्यटकों ने भ्रमण शुरू किया और बहुत ही सकारात्मक परिणाम रहा। पर्यटन को इस क्षेत्र में काफी बढ़ावा मिला और गंगोत्री धाम आने वाले यात्रियों को एक और खूबसूरत गंतव्य मिल गया। लेकिन गरतांग गली (Gartang Gali) पुल काफ़ी पुराना और कमज़ोर था जिसकी वजह से इसको दुबारा बंद कर दिया गया और उत्तराखंड पर्यटन ने इसके रेनोवेशन का कार्य शुरू किया।
इस जगह के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए गरतांग गली (Gartang Gali) की सीढ़ियों का पुनर्निर्माण कार्य भी शुरू किया गया जिसे इसी साल जुलाई माह में पूरा किया गया है। सरकार का मानना है कि इससे पर्यटन को गति मिलेगी। 1962 के बाद अब करीब 59 सालों बाद दोबारा पर्यटकों के लिए यह खोल दिया गया है और देश भर के पर्यटकों की आवाजाही भी शुरू हो गई है।
गरतांग गली (Gartang Gali) की लगभग 150 मीटर लंबी सीढ़ियां अब अपने एक नए रंग में नजर आने लगी हैं और लोग इस जगह की खूबसूरती का दीदार भी करने लगे हैं। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी ये सीढ़ियां इंजीनियरिंग का नायाब नमूना हैं।
गरतांग गली (Gartang Gali) की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो यह भैरव घाटी से नेलांग को जोड़ने वाले पैदल मार्ग पर जाड़ गंगा की घाटी में मौजूद है। नेलांग घाटी जिसे उत्तराखंड का लद्दाख कहा जाता है चीन सीमा से लगी है। इसी सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं।