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पर्यटन स्थल

जौनसार बावर का आदिवासी समुदाय और सांस्कृतिक विरासत

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हमारे देश भारत की सांस्कृतिक विरासत बहुत ही अलहदा है। यहां तरह-तरह के लोग, तरह-तरह की बोली भाषा और आचार-विचार पाए जाते हैं। ऐसा ही भारत के पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भी एक जौनसार बावर (jaunsar-bawar) नामक क्षेत्र है जिसे अपनी अलहदा और अनोखी सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। कला और संस्कृति में दिलचस्पी रखने वाले हर इंसान की लालसा होती है कि एक बार जौनसार बावर (jaunsar-bawar) क्षेत्र का भ्रमण करे और यहां स्थित कालसी और लाखामंडल क्षेत्र की ऐतिहासिक और पौराणिक विशेषताओं के बारे में नजदीक से जान सके।

जौनसार बावर (jaunsar-bawar) उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में आता है और चकराता और मसूरी इस के आसपास का क्षेत्र है जो प्रदेश के सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले पर्यटन स्थलों में आता है। इस जगह का भूगोल हो या फिर इतिहास दोनों की ही बात बहुत ही अजब-गज़ब और निराली है। कुछ लोग इस क्षेत्र को सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म की वजह से जानते हैं तो कुछ लोग कौरव-पांडव कालीन कहानियों और पौराणिक कथाओं की वजह से इस जगह पर खींचे चले आते हैं।

मेरी दिलचस्पी यहां की संस्कृति और लोगों के बारे में थी इसलिए मैं भी इस जगह पर खिंचा चला आया।

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मेरी जौनसार बावर (Jaunsar Bawar) यात्रा

मैंने इस जगह की पहली यात्रा 2013 में एक शैक्षिक यात्रा के तौर पर की थी। मैं उन दिनों जौनसार बावर (jaunsar-bawar) की मानवीय संस्कृति और व्यवहार को जानने-समझने का प्रयास कर रहा था और कई बार ऐसा होता था कि मुझे वहां के बीच गांव में ही रुक जाना पड़ता था। मैं तक़रीबन एक सप्ताह तक इस आदिवासी घाटी में रहा था।

स्थानीय जगहों पर घूमने के साथ-साथ मैंने यहां की स्थानीय संस्कृति के बारे में जानने का प्रयास किया और पाया कि इस जगह पर अभी भी पुरातन संस्कृति को मानने वाले लोग हैं। वह अभी भी अपनी सदियों से चली आ रही परम्पराओं को मानते हैं। मैंने यह जानने की भी कोशिश की कि इस जगह को जौनसार बावर (jaunsar-bawar) क्यों कहा जाता है?

जौनसार बावर (Jaunsar Bawar) की जनजातियां

सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो जौनसार-बावर (jaunsar-bawar) के दो प्रमुख क्षेत्र हैं, जिसमें ये दोनों ही जनजातियां निवास करती हैं। निचला हिस्सा जौनसार और ऊपरी हिस्सा बावर कहलाता है। दोनों ही क्षेत्र एक ही भूभाग के अलग-अलग हिस्से हैं और एक-दूसरे से पूरी तरह सटे हुए हैं। लेकिन यहां के मूल निवासी अपनी उत्पत्ति को अलग-अलग मानते हैं। जौनसारी जनजाति के लोग खुदको पांडवों का वंशज मानते हैं और बावर के लोग खुदको कौरवो से जोड़कर देखते हैं। क्रमश इनको पाशि और शाठी भी कहा जाता है।

भौगोलिक विविधता तथा यमुना और टौंस नदियों के मध्य में स्थित होने के कारण ये दोनों समुदाय शताब्दियों से विश्व समुदाय से अलग थलग पड़े हुए रहे हैं जिसका अच्छा पहलू यह है कि इनकी सांस्कृतिक विशेषताएं और परम्पराएं इनके बीच अब भी कायम हैं। खराब बात यह कि यह लोग भागती हुई वैश्विक रफ़्तार के लिहाज से पीछे छूट गए हैं।

संस्कृति और पुरातन परम्परा (Jaunsar Bawar)

इस पूरे जौनसार बावर (jaunsar-bawar) क्षेत्र में आदिवासी समुदाय की बहुलता है। दोनों समुदायों की संस्कृति लगभग समान होने के बावजूद भी एक दूसरे से अलग है। दोनों समुदाओं के बीच विवाह सम्बन्ध बहुत कम देखने को मिलता है। इस जगह की सबसे विशिष्ट बात यह कि जौनसारी समुदाय में यदाकदा अभी भी बहुपतित्व की परम्परा है।

इस क्षेत्र की महिलाएं अपने लिए एक से अधिक पति चुन सकती हैं जो कि देश के अन्य भागों में देखने को नहीं मिलता है।

वैसे तो पूरे उत्तराखंड को कुमाऊं और गढ़वाल दो क्षेत्रों में बांटा गया है लेकिन यहां पर आपको आकर पता चलेगा कि सांस्कृतिक आधार पर उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल और जौनसार कुल तीन क्षेत्र हैं। इन दोनों ही जनजातियों की संस्कृति कुमाऊं और गढ़वाल के लोगों से बिल्कुल ही अलग है। बहुविवाह और बहुपति प्रथा धीरे-धीरे खात्मे की ओर है लेकिन ऐसा बताया जाता है कि 1990 से पहले तक यहां के कुछ आमिर कबीले कई-कई पत्नियां रखते थे और गरीब कबीले एक ही विवाह करके अपनी एक ही पत्नी को अपने बाकी सभी भाइयों के साथ साझा करते थे।

इस परम्परा को लोग पांच पांडवों के द्रौपदी से विवाह से जोड़कर देखते हैं।

जौनसार बावर (Jaunsar Bawar) के पर्यटन स्थल

मेले और तीज त्यौहार की बात करें तो जौनसारियों (jaunsar-bawar) का सबसे महत्वपूर्ण पर्व माघ मेला है। इस पर्व में पूरी तरह से जश्न का माहौल होता है। खानपान चलता है जिसमें जानवरों की बली की रस्म होती है। इस बलि प्रथा को ‘मारोज’ के वध के जश्न के रूप में देखा जाता है। स्थानीय लाेगों के अनुसार मारोज एक राक्षस था जो के घाटी के लोगों को परेशान करता था।

जौनसार बावर (jaunsar-bawar) में हुण वास्तुशिल्प में बना एक मंदिर यहां के मुख्य आकर्षणों में से एक है। इस क्षेत्र के प्रमुख स्थल कालसी, लाखमण्डल, बैराटगढ़ और हनोल है। दून घाटी और गढ़वाल हिमालय से गुजरती टोंस और यमुना जैसी नदियों को देखना रोमांचित करता है। इन सबके इतर यहां घूमने और देखने के लिए यमुना नदी के तट पर बसा लाखामण्डल गांव, 5वीं शताब्दी का बना शिव मन्दिर और कुछ प्राकृतिक गुफाएं हैं।

इस जहह पर आकर बहुत अच्छा लगता है, ऐसा लगता है कि हम किसी और ही दुनिया में आ गए।

travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।