चम्बा, हिमाचल (Chamba Himachal) : हिमाचल का नाम आये और चम्बा का जिक्र ना हो तो कुछ अधूरा सा लगता है। भारतीय जनमानस में जिस कदर पहाड़ी जीवन बसा है बिलकुल उसी तरह से पहाड़ी संस्कृति और विरासत की प्राचीन प्रतीक के रूप में यह जगह। इस जगह के महत्वपूर्ण होने का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह कभी पहाड़ी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी।
वर्तमान में यह खूबसूरत जगह दुनिया भर के सैलानियों के बीच भारत के एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में जानी जाती है। यह दुनिया भर में अपने रमणीक मंदिरों के लिए विख्यात है।
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चम्बा का इतिहास
राजा साहिल वर्मन एक अति वीर राजा था। जिसने किर और तुरूकश नामक शक्तिशाली कबीलों को हराया था। जिसके बाद जीत की ख़ुशी में मिंजर मेला का आयोजन हुआ था जो चम्बा में आज भी मनाया जाता है। चम्बा (Chamba) को उसी ने 920 ई. में स्थापित किया था। इस नगर का नाम उसने अपनी पुत्री चंपावती के नाम पर रखा। एक लम्बा समय गुजर जाने के बाद भी चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरे चंबा ने अपनी प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजो कर रखा है।
वर्तमान में भी प्राचीन काल की अनेक निशानियां चंबा में देखी जा सकती हैं। चम्बा की प्राचीन राजधानी ब्रह्मपुर थी। चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन त्सांग ने इसका वर्णन करते हुए एक जगह पर इस बात का उल्लेख किया है कि ब्रह्मपुर अलखनंदा और करनाली नदियों के बीच बसा है। कुछ काल बाद इस प्रदेश की राजधानी चंबा (Chamba) हो गई। 15 अप्रैल 1947 में इसका विलयन भारत सरकार द्वारा शासित हिमाचल प्रदेश में हो गया।
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चम्बा कैसे जाएं?
इन जगहों पर यदि आप सब जाना चाहते हैं तो आपको बता दूं कि चंबा जाने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट अमृतसर है जो चंबा से 240 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अमृतसर से चंबा जाने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है जो दिल्ली और मुम्बई से नियमित ट्रैनों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। चंबा (Chamba) सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन निगम की बसें चंबा के लिए नियमित रूप से चलती हैं।
चम्बा में कहां ठहरे?
चम्बा में खाने पीने और ठहरने की जगहों की कोई कमी नहीं है। आपको इस जगह पर होटल से लेकर होमस्टे तक की हर सुविधा मिल जाएगी जहां आप अपनी सुविधा के अनुसार ठहर सकते हैं। आप चाहें तो खजियार में भी रुक सकते हैं जो की चम्बा (Chamba) के काफी नजदीक और खूबसूरत जगह है।
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चम्बा के पर्यटन स्थल
इस जगह पर प्राकृतिक सुंदरता के अलावा यहां विभिन्न प्राचीन और सुंदर वास्तुशिल्प का भी उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिलता है। मंदिरों और हैंडीक्राफ्ट के अलावा इस जगह पर बहुत सारे पर्यटन स्थल भी हैं जहां आप जाकर आप घुमक्कड़ी का आनन्द ले सकते और अपना अच्छा समय बिता सकते हैं।
1- चंपावती मंदिर
यह मंदिर राजा साहिल वर्मन की उसी पुत्री को समर्पित है जिसके नाम पर उन्होंने इस शहर का नाम चम्बा रखा। यह मंदिर शहर की पुलिस चौकी और कोषागार भवन के पीछे स्थित है। कहा जाता है कि चंपावती ने अपने पिता को चंबा (Chamba) नगर स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है। मंदिर में पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और छत को पहिएनुमा बनाया गया है।
2- खजियार
खजियार हिमाचल में स्थित एक ऐसी जगह है जहां पर जाने की इच्छा हर युवा की होती है। यह चंबा (Chamba) की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। कुछ लोग तो प्राकृतिक सुंदरता के कारण इस जगह को ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ भी कहते हैं। इस जगह पर कैफ़े कल्चर भी काफी मशहूर है। यहां हर साल लाखों की संख्या में लोग घूमने के लिए आते हैं। खजियार में एक झील भी है जहां पर लोग समय बिताना पसंद करते हैं।
इस जगह की खूबसूरती और मनोरम दृश्य लोगों के मन को भा जाता है।
3- चामुंडा देवी मंदिर
चामुंडा देवी को चम्बा का देवी कहा जाता है और यह लाखों लोगों के आस्था और विश्वास की प्रतीक मानी जाती हैं। यही कारण है कि यह मंदिर चंबा के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों में से एक है। चम्बा (Chamba) की पहाड़ियों की खूबसूरती को जो लोग देखने के लिए आते हैं पहाड़ की चोटी पर स्थित इस मंदिर का दर्शन करके अपने आपको धन्य समझते हैं। माता का यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और यह मां दुर्गा को समर्पित है। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर से रावी नदी और उसके आसपास का सुंदर नजारा देखा जा सकता है।
4- लक्ष्मीनारायण मंदिर
लक्ष्मीनारायण मंदिर चंबा में स्थित सबसे विशाल और प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण भी इस शहर की स्थापना करने वाले राजा साहिल वर्मा ने 10वीं शताब्दी में करवाया था। आस्था की दृष्टि से देखा जाए तो यह काफी महत्वपूर्ण मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की जो मूर्ति है वह एक दुर्लभ संगमरमर से बनी हुई है जो विंध्य के पहाड़ों में पाया जाता है।
5- पौराणिक गांव कूरा
यह चंबा (Chamba) जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है जिसका इतिहास बड़ा ही पुराना है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल के दौरान जब कौरवों ने पांडवों को वनवास दिया था, तो पांडवों ने माता कुंती के साथ इसी जगह पर दोपहर का भोजन किया था और उनके नाम पर ही इस गांव का नाम कुंतापुरी पड़ा था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे लोगों ने इसे कूंरा नाम दे दिया। कहा जाता है कि यहां पांडवों द्वारा बनाई गई पत्थरों की कई मूर्तियां मौजूद हैं।
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