Menu
पर्यटन स्थल

बिनसर: पौराणिक कथाओं और प्रकृति का अनोखा मेल

binsar

शहरी जीवन शैली कुछ ऐसी बन गई है कि हम चाहकर भी अपने लिए वक़्त नहीं निकाल पाते हैं। ऐसे में सिर्फ एक ही विकल्प बचता है यात्रा का। यह एक ऐसी चीज है जिसमें घूमना भी हो जाता है और हमें खुदके साथ समय बिताने का एक जरिया भी मिल जाता है। लेकिन इन सबके बीच एक चुनौती यह भी रहती है कि आखिर कहां जाया जाए ? जगह ऐसी हो कि एक स्मृति बन जाये और कुछ दिनों के लिए हमारा मन भी बहल जाये ? इसीलिए सोचा क्यों ना इस ब्लॉग में आप सबको बिनसर (Binsar) घूमने की पूरी जानकारी दे दी जाए। बिनसर एक शांत है जहां पहुंचकर लौटने का दिल नहीं करता। एक बार आप खुद जाकर देखेंगे तो समझ में आएगा कि यह जगह आखिर है क्या ?

बिनसर की यात्रा

देवदार के जंगलों से घिरा बिनसर अल्मोड़ा से कुछ ही दूरी पर स्थित है। अगर आप दिल्ली से आते हैं तो आपको अल्मोड़ा के लिए उत्तराखंड परिवहन की बस कश्मीरी गेट से मिल जाएगी। अल्मोड़ा से बिनसर (Binsar) आने के लिए आप टेक्सी ले सकते हैं। अल्मोड़ा से बिनसर तक का पूरा रास्ता देवदार के ऊंचे घने पेड़ों के बीच से होकर गुजरता है। इस जगह से केदारनाथ, चैखंबा, नंदा देवी, पंचोली और त्रिशूल आदि हिमालय की चोटियां दिखाई देती हैं। इस जगह से आप ग्रेटर हिमालय और कुमाऊं की पहाड़ियों को देखने का लुत्फ़ उठा सकते हैं। रात के समय पूरा अल्मोड़ा मानोंकि हमारी आंखों में उतर आता है।

इस जगह पर (Binsar) आपको जैव विविधता भरपूर मिलेगी और यहां पर कुछ दिनों तक ठहरना आपको अच्छा लगेगा। हालांकि जगह छोटी है इसलिए होटल आदि के ज्यादा विकल्प तो नहीं मिलेंगे लेकिन आपको ठहरने की जगह मिल जाएगी। नहीं तो आप पास के किसी गांव में भी ठहर सकते हैं। गांव के लोग आसानी से आपके ठहरने और खानपीन का इंतजाम करा देंगे। इस जगह पर रहते हुए आप कई पर्यटन स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं। बिनसर अभयारण्य, बिनसर महादेव और बिनसर मंदिर घूमना इस जगह पर रहते हुए हरगिज़ नहीं भूले।

बिनसर का इतिहास

बिनसर (Binsar) का एक समृद्ध और आकर्षक इतिहास है। यह चंद वंश की राजधानी थी जो की सातवीं और आठवीं शताब्दी के मध्य कुमाउं क्षेत्र पर शासन करता था। ऐसा कहा जाता है कि चंद राजवंश के शासक इस शांत शहर की पहाडियों और प्रकर्ति के बीच सुखुद मौसम और शांतिपूर्ण दृश्यों का आनंद लेने के लिए गर्मियों में बिनसर गए थे और अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।

बिनसर वन्य जीव अभयारण्य

बिनसर वन्य जीव अभयारण्य की यात्रा आपको पूरी तरह से रोमांच से भर देगी। इस अभयारण्य में वैसे तो प्रमुख रूप से तेंदुआ पाया जाता है लेकिन इस जगह पर हिरण और चीतल भी सहज रूप से दिखाई दे जाते हैं। पक्षियों के लिए भी यह काफी विविधताओं को अपने आपमें समेटे हुए है। इस जगह पर २०० से भी ज्यादा तरह के पक्षियों की प्रजातियां पायी जाती हैं।

मोनाल उत्तराखंड का राज्य पक्षी भी है किन्तु अब ये बहुत ही कम दिखाई देता है। इस जगह पर मोनाल का पाया जाना इस जगह को काफी पॉपुलर बनाता है। इस अभयारण्य में एक वन्य जीव संग्रहालय भी स्थापित किया गया है जहां पर आपको इससे जुड़ी तमाम तरह की ज्ञानवर्धक जानकारी मिल सकती है।

बिनसर महादेव मंदिर

रानीखेत से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बिनसर महादेव मंदिर स्थित है जो कि इस क्षेत्र के सबसे प्रमुख मंदिरों में शुमार है। देव भूमि उत्तराखंड की अलोकिक धरती पर यह मंदिर स्वर्ग से कम नहीं है। यह काफी खूबसूरत मंदिर है जिसके गर्भगृह में गणेश, हरगौरी और महेशमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। महेशमर्दिनी की प्रतिमा पर नागरीलिपि मुद्रित है जिसका संबंध नौवीं शताब्दी से है।

यह मंदिर भगवान हरगौरी, गणेश और महिषासुरमंदिनी के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह मंदिर महाराजा पृथ्वी ने अपने पिता बिन्दु की याद में बनवाया था। इसीलिए मंदिर को स्थानीय लोग इसे बिन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह आपको भारत की पुराणी शिल्पकला का जीवंत अनुभव का अहसास कराएगा। जनश्रुति के अनुसार कभी इस वन में पाण्डवों ने वास किया था। पाण्डव एक वर्ष के अज्ञातवास में इस वन में आये थे और उन्होंने मात्र एक रात्रि में ही इस मन्दिर का निर्माण किया।

गोलू देवता का मंदिर

गोलू देवता को न्याय का देवता कहा जाता है। बिनसर क्षेत्र में गोलू देवता और बिनसर के राजा के बीच एक पौराणिक युद्ध का भी वर्णन मिलता है। गोलू देवता को गौर भैरव या भगवान शिव का अवतार माना जाता है , गोलू देवता को उत्तराखंड के कुमाउं क्षेत्र में पौराणिक और ऐतिहासिक भगवान का दर्जा प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है कि ग़लतफ़हमी के कारण गोलू देवता का सिर काट दिया गया था। सूढ़ बिनसर वन्यजीव अभयारण के निकट ग्यारड दाना गोलू में सिर कपकरहन में गिरा था।

इन दोनों जगहों पर अभी भी भगवान गोलू को समर्पित मंदिर है।

भगवन शिव के इस मंदिर को चितइ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

इस मंदिर में आये भक्त अपनी परेशानियों को काग़ज़ या स्टाम्प पेपर में लिखकर गोलू देवता के मंदिर में रख कर चले जाते है और परेशानी या मनोकामना दूर होने पर मंदिर में घंटी या अन्य वस्तु को भेटस्वरुप मंदिर परिसर में लगा जाते है। मंदिर को “दस लाख घंटों” का मंदिर भी कहा जाता है।

travel writer sanjaya shepherd लेखक परिचय

खानाबदोश जीवन जीने वाला एक घुमक्कड़ और लेखक जो मुश्किल हालातों में काम करने वाले दुनिया के श्रेष्ठ दस ट्रैवल ब्लॉगर में शामिल है। सच कहूं तो लिखने और घूमने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। इसलिए, वर्षों से घूमने और लिखने के अलावा कुछ किया ही नहीं। बस घुम रहा हूं।