आप यहां पाएंगे घुमक्कड़ी से जुड़ी हर तरह की जरूरी और समसामयिक जानकारी। कब, कहां और कैसे जाएं? घुमक्कड़ी की शुरुआत कैसे और कहां से करें? घुमक्कड़ी को अपना फुल टाइम कैरियर कैसे बनाएं? देश की बेहतरीन जगहें, खान पान, सैर सपाटा, भारत की विविधता पूर्ण संस्कृति और लोगों से मिले अनुभव पर आधारित कंटेंट, जिसे बेहतरीन लेखकों और घुमक्कड़ों ने खास तौर पर आपके लिए तैयार किया है। हर मूड, हर मिज़ाज और हर मौके के लिए आपको यहां भरपूर सामग्री मिलेगी। इस पेशकश के पीछे हैं हिंदी के प्रमुख लेखक और जन्म जात घुमन्तु संजय शेफर्ड जिन्हें देश दुनिया में यात्रा और यात्रा लेखन से संबंधित बहुत ही वृहद अनुभव है।
ब्लागर परिचय
मेरा नाम संजय शेफर्ड है और मैं इस ब्लाग का निर्माणकर्ता, लेखक और फोटोग्राफ़र हूं। राजधानी दिल्ली में मेरा एक स्थायी ठिकाना है पर देश के विभिन्न गांवों और शहरों में कभी मतलब से तो कभी बेमतलब घूमता रहता हूं। कुछ साल पहले तक घूमना और लिखना शौकिया शुरू हुआ था पर घर-गृहस्थी और जीवन की जद्दोजहद की वजह से धीरे-धीरे यह मेरा काम और अब पूरी तरह से आजीविका का साधन बन गया है।
वर्तमान जीवन
मैं हिन्दी का एक अदना सा लेखक और जबरदस्त घुमक्कड़ हूं। कविताएं लिखना और पढ़ना मुझे बेहद अच्छा लगता है। प्रेम, प्रकृति और स्त्री मेरे लेखन का मुख्य विषय है जिन पर अस्वीकृतियों के बाद और पत्थरों की मुस्कराहट नाम से मेरे दो कविता संग्रह भी प्रकाशित हैं। एक और संग्रह तैयार हो गया है जिसका नाम भीड़ का एकांत है, कब प्रकाशित करूंगा यह हाल-फिलहाल मुझे भी नहीं मालूम।
जन्म और शिक्षा
जन्म उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ जोकि गोरखपुर जनपद के आता है। अपने पैतृक गांव के ही स्कूल में मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की। सात साल तक जवाहर नवोदय विद्यालय का छात्र रहा। विज्ञान की पढ़ाई ने कला के प्रति सम्मोहन पैदा किया और स्कूल में जिन किताबों को आलतू-फालतू कहा जाता था कॉलेज में आने के बाद उन्हीं से अचानक प्यार हो गया।
शिक्षा और नौकरी
लिखने-पढ़ने की जिजीविषा ने पत्रकारिता की तरफ ढ़केल दिया तो माखनलाल पत्रकारिता विश्व विद्यालय से मैंने बैचलर ऑफ मास कम्युनिकेशन सेंट जेवियर स्कूल ऑफ कम्युनिकेशन से मास्टर ऑफ़ मास कम्युनिकेशन किया। दिल्ली अच्छी जगह थी कि मुंबई यह कभी समझ में नहीं आया पर रोजी-रोटी की जुगत में सात सालों तक इन्हीं दो शहरों में भटकता रहा। इस दौरान बालाजी टेलीफिल्म, रेडियो मिर्ची और बीबीसी ट्रेवल के साथ काम किया।
नौकरी क्यों छोड़ी
सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता। हां, कभी-कभी यह जरूर सोचता हूं कि मैंने नौकरी किया ही क्यों? सिर्फ दो जोड़ी जूते और एक बैकपैक खरीदने के लिए? नहीं मालूम यार क्योंकि मैं काम से प्यार करने वाला इंसान हूं। जब नौकरी में था तो मुझे नौकरी अच्छी लगती थी बस वह फ्रीडम नहीं थी जो मैं चाहता था और जब छोड़ दिया तो पता चला कि यह तो सचमुच एक गलत चुनाव था।
घूमना सही काम है?
घूमना भी काम ही है पर यह सही गलत से परे का काम है। यही कारण है कि मेरा इसमें कुछ ज्यादा ही मन लगता है। गांव-गिराव, नदी-पहाड़, लोक और जीवन मुझे बहुत ज्यादा आकर्षित करता है। छोटी-छोटी जगहें, छोटी-छोटी जीवन से जुड़ी बातें मुझे ज्यादा अच्छी लगती हैं। बड़ी चीजों से पता नहीं क्यों मुझे बहुत ज्यादा परहेज़ है। बड़ा नाम और शोहरत से पता नहीं क्यों जी घबराता है।
हां, पर कोई जब यह कहता है कि तुम बहुत अच्छे हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। कोई यह कह दे कि अच्छा लिखते हो, अच्छा घूमते हो तो और भी अच्छा लगता है। यह मेरी अच्छाई बरकरार रहे इसके लिए हर रोज़ काम करता हूं। किसी दिन अच्छा लिखकर खुश हो जाता हूं, किसी दिन अच्छी जगह घूमकर, किसी दिन किसी अच्छे इंसान से मिलकर तो किसी दिन अच्छा काम करके।
भारत में कहीं पर सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण पर्यटन या पर्यावरण के क्षेत्र में यदि आप काम करते हैं और आप के विचार में मैं उसमें कुछ सहायता कर सकता हूं तो मुझे अवश्य लिखिये। मुझसे जो बन पड़ेगा, अवश्य करूंगा।
मेरे रुचि क्षेत्र
मुझे पढ़ने लिखने से इतर बचपन में घूमने-टहलने का शौक था। बचपन गांव में बीता और भेड़-बकरियों के साथ वर्षों तक नेपाल के तराइन की चरागाहों में भटकता रहा। शिक्षा काफी देरी से शुरू हुई और धीरे-धीरे पीएचडी तक पहुंची। मैंने बैचलर ऑफ़ मास कॉम में बैचलर और मास्टर किया और म्यूजियोलॉजी में डॉक्ट्रेट।
फिर नौकरी शुरू की और इस दौरान तमाम तरह की राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय संस्थाओं में काम किया।
देश-विदेश की यात्राओं ने भूगोल, इतिहास, कला और संस्कृति के प्रति रूचि पैदा की। फिर लिखना पढ़ना शुरू हुआ तो खूब सारी किताबें पढ़ी और नौकरी ऊब पैदा करने लगी तो छोड़कर घुमक्कड़ी करने लगा।
2016 से अभी तक घूम रहा हूं।

