हिमालय कई तरह के रहस्यों से जुड़ा हुआ है और बात जब उत्तराखंड की हो तो फिर क्या ही कहना। आज हम उत्तराखंड की एक ऐसी जगह के बारे में जानेंगे जो अपनी वर्षों पुरानी मान्यताओं के लिए जानी जाती है। लोककथाओं में ऐसा बताया गया है कि इस जगह पर आछरी अर्थात परिया वास करती हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं टिहरी गढ़वाल जिले के प्रतापनगर ब्लॉक में स्थित खैट खाल पर्वत की जिसे परियों का देश कहा जाता है।
टिहरी झील से सटा यह गुंबदाकार खैट खाल पर्वत अनोखी कहानियों और रहस्यमयी दुनिया अपने आप में समेटे है। यह जितनी अपनी अजब-ग़ज़ब कहानियों और मान्यताओं के लिए जाना जाता है उससे भी कहीं ज़्यादा प्राकृतिक रूप से सुंदर है। हरे-भरे पहाड़ों के बीच से होकर गुज़रता रास्ता जिसे देखकर ऐसा लगता है कि हम किसी जन्नत में आ गए हैं और बार-बार ठहरने का जी करता है।
सच कहूँ तो इन अजब-ग़ज़ब रहस्यों से इतर मैंने यहाँ के प्राकृतिक वातावरण को कहीं ज़्यादा एंजोय किया।
यह भी पढ़ें: किसी स्वर्ग से कम नहीं है हिमाचल का चम्बा
ऐसी मान्यता है कि खैट खाल पर्वत की नौ चोटियों में नौ परियों का वास है। यहां परियां रहती थी जोकि इस धात पर्वत और गांव के लोगों की रक्षा करती थी। इसीलिए प्राचीनकाल से ही इस जगह पर इन बुग्यालों में चिल्लाना, चटक कपड़े पहनना, बेवजह वाद यंत्र बजाना, प्रकृति के विपरीत काम करना पूरी तरीके से प्रतिबंधित रखा गया है।
स्थानीय लोगों की मानें तो यहां पर देवस्थान होने के कारण परियां खेलने के लिए आती थी, उन्होंने ही अपने खेल के लिए यहां पर गुफा और ओखलियां बनाई। परियों के यहां आने के कारण मान्यता थी कि अगर कोई इंसान खैट खाल पर्वत पर चला जाए तो परियां उसे अपने साथ ले जाती थी। इस कारण रात में वहां पर कोई भी आसपास के ग्रामीण नहीं जाते हैं।
इन परियों को उत्तराखंड में आछरी-मांतरी के रूप में जाना जाता है। कठिन भैगोलिक परिस्थितियों के बीच तरह-तरह की प्राकृतिक आपदाओं और अनर्थ से बचने के लिए गांव के लोग आज भी इनकी वनदेवियों के रूप में पूजा करते हैं। पारंपरिक मान्यता है कि यह वनदेवियां गांव पर आने वाले तमाम तरह के संकट से बचाती हैं।
धात गांव से तक़रीबन छह किमी की दूरी पर खैट मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यहां पर मां दुर्गा ने मधु-कैटव दानव का वध किया था, जिसके बाद कैटव का अपभ्रंश होकर यह खैट हो गया। इस मंदिर की इस जगह पर काफ़ी मान्यता है। इस मंदिर में नौ देवियां नौ बहनें हैं, स्थानीय लोग इनकी आछरी यानि कि परियों के रूप में पूजा करते हैं।
इस लघुशिखर पर एक बहुत ही सुंदर सा घास का मैदान भी है जहां पहुंचकर ऐसा लगता है कि हम हिमालय के शिखर पर आ गए हैं। खैट खाल पर्वत के ठीक नीचे भिलंगना नदी बहती है जोकि इस जगह की ख़ूबसूरती में चार चांद लगाने का कार्य करती है। इस पर्वत से आरगढ़, गोनगढ़, केसर पट्टी और भिलंगना घाटी के मनोरम दृश्य को देखा जा सकता है।
खैट खाल पर्वत से हिमालय की कई सारी चोटियां दिखाई देती हैं और एक बार पहुंच जाओ तो जल्दी लौटने का दिल नहीं करता है। मन स्वर्गरोहिणी, यमुनोत्री, गंगोत्री, बंदरपूँछ, चौखम्भा के बीच इस क़दर खो जाता है कि घंटों का समय कब बीत गया पता नहीं चलता है। इस जगह से सतोपंथ, त्रिशूल, हाथी पर्वत, खतलिंग आदि की भी चोटियां दिखाई देती हैं।
इस पर्वत पर आज भी बहुत सारे फूल होते हैं, कहा जाता है कि देवियां इन्हीं फूलों के बीच में रहती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि खैट खाल पर्वत के इस वीराने में स्वत ही अखरोट और लहसुन की खेती होती है पर यह सिर्फ़ मंदिर परिसर के ही काम आती है। ये सब तरह-तरह की बातें और स्थानीय मान्यतायें हैं पर इन सबसे इतर आधारभूत सुविधाओं के अभाव में अपनी असल पहचान के संकट से जूझ रहा है।
लोक कथाओं में परियों के देश के नाम से मशहूर खैट खाल पर्वत को पर्यटन विभाग पहचान नहीं दिला पा रहा है। जिसके चलते यह रहस्यमयी पर्वत रोमांच और पर्वतारोहण के शौकीनों की नजरों से दूर है। वर्ष 2016 में पर्यटन विभाग ने खैट पर्वत पर सुविधाओं के विकास के लिए ढाई करोड़ रुपये का प्रस्ताव शासन को भेजा था जिस पर सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया।
इस जगह को पर्यटन के रूप में विकसित करने के लिहाज़ से काफ़ी चीज़ें मौजूद हैं। चोटी तक जाने के रास्तों, ठहरने और पीने के लिए पानी की समुचित व्यवस्था करके इस जगह को पर्यटन के मानचित्र पर लाया जा सकता है।
खैट पर्वत की विशेषता
- रहस्यमयी गुफाएं
- रॉक क्लाइमिंग के लिए उपयुक्त खड़ी चट्टानें
- पैरा ग्लाइडिंग के लिए उपयुक्त लांचिंग पैड
- 10500 फीट की ऊंचाई का ट्रैक
- खैट की चोटी पर हरा भरा मैदान
खैट पर्वत पर देखने और जानने लायक़ काफ़ी कुछ है, इस जगह पर जाकर काफ़ी कुछ जाना समझा और एक्सप्लोर किया जा सकता है।